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________________ योग । ८५ करते है। सूर्य और चन्द्र दोनों लाक्षणिक शब्द हैं । सूर्य प्राण-वायु और चन्द्र अपान-वायु का वाचक है । इन दोनों पर विजय प्राप्त करना हठयोग का मुख्य उद्देश्य है। हठयोग के आठ अंग हैं : (१) यम (५) प्रत्याहार (२) नियम (६) धारणा (३) आसन (७) ध्यान (४) प्राणायाम (८) समाधि वायुविजय के लिए इनमें प्राणायाम ही मुख्य है । उसके तीन रूप हैं : (१) पूरक (२) रेचक ... (३) कुम्भक 'श्वास भरने को पूरक, बाहर निकालने को रेचक और रोकने को कुम्भक कहा जाता है । श्वास बाहर रोका जाता है, उसे बहिः कुम्भक और भीतर रोका जाता है, उसे आन्तरिक कुम्भक कहा जाता है। सूर्य अर्थात् प्राण-वायु का स्थान हृदय है। चन्द्र अर्थात् अपान-वायु का स्थान नासिकाग्र से बारह अंगुल पर है। इन दोनों का मिलन दोनों कुम्भकों में होता है। हृदय में चन्द्र (अपान-वायु) लय पाता है और सूर्य प्राण-रूप होकर बाहर नहीं निकलता तब तक आन्तरिक कुम्भक होता है। चन्द्र के स्थान में सूर्य (प्राण-वायु) लय पाता है और चन्द्र अपान-रूप में ऊपर उठना प्रारम्भ नहीं करता तब तक बहिः कुम्भक होता है। इन दोनों दशाओं में दोनों वायु मिलते हैं । इसलिए इसे सूर्य-चन्द्र का एकत्रीकरण, मिलन अथवा हठयोग कहा जाता है। __ लययोग : छह या नव चक्रों (नाड़ी-ग्रन्थि स्थानों) में धारणा ध्यान करते-करते मन का लय होता है, वह लययोग है। लय अर्थात् बाह्य ज्ञान से शून्य हो जाना, चित्त को किसी वस्तु में खो देना, चित्त का किसी अनिर्देश्य आकार में विलय कर देना। मंत्रयोग : मंत्र का जप अथवा इष्ट की आराधना करते-करते जो मन Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003076
Book TitleTat Do Pravah Ek
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1967
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size5 MB
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