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विस्मति का वरदान । ६६
नहीं होता तो प्रतिशोध की बात ही नहीं होती।
जो साथ रहते हैं, उनमें कलह भी हो जाता है। जिसे विस्मृति का वरदान प्राप्त है, वह उसे भुला देता है और सुख से जीता है । कुछ आदमी सुख से नहीं जी सकते । वे विस्मृति के धागों में उलझकर दूसरों पर आग उगलते रहते हैं। ___ मैं जब-जब अपने सुखी जीवन की कल्पना करता हूं, तब-तब भूलने का अभ्यास करता हूं। उतना सब भूल जाना चाहता हूं जितना सिर का भार है। बहुत याद रखना ज़रूरी नहीं। उतना ही काफी है, जितना जीवन-रथ को आगे ले जाए।
स्मृति ! तुम मेरे जीवन-रथ को पीछे की ओर घसीटना चाहो तो तुम्हें मेरा दूर से ही प्रणाम है।
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