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________________ सुख और शान्ति । ६७ विश्वास ही नहीं हैं। ग्रहों के साथ भारतीय ज्योतिष में हीरे-सोने का सम्बन्ध बताया गया है और इसकी पुष्टि वैज्ञानिक भी आज कर रहे हैं। आज का बुद्धिवाद भी अशान्ति का एक कारण बन रहा है। यदि आप जीवन में शान्ति चाहते हैं, सूख की कल्पना साकार करना चाहते हैं तो अपने मन पर नियंत्रण करिए। सुख तीन प्रकार का होता है—शारीरिक सुख, इन्द्रिय सुख और मानसिक सुख । शारीरिक सुख आपको प्रिय है। इसे प्राप्त करने के लिए आप काफी सचेष्ट भी रहते हैं। इन्द्रियों के सुख के लिए भी आप बहुत ही प्रयत्नशील' रहते हैं परन्तु मानसिक सुख की ओर आपका ध्यान नहीं जाता। आप मान लेते हैं कि यदि शारीरिक सुख एवं इन्द्रिय सुख की प्राप्ति हुई तो मानसिक सुख स्वतः प्राप्त हो जाएगा। परन्तु आपसे मूल में ही भूल हुई है। आप यदि मन को मालिक मानकर चलेंगे तो सुख की अनुभूति कदापि नहीं हो सकती। हां, सेवक मानने से सुख अवश्य प्राप्त होगा। मन चाहता है कि सुख मिले परन्तु यदि उस पर अधिकार नहीं किया गया तो सुख नहीं मिल सकता। यदि आप मन को अपने नियंत्रण में रखेंगे तो सुख का समुद्र लहराएगा, शान्ति मिलेगी। मन को सेवक मानने पर इन्द्रियां स्वयं सेवक बन जाएंगी। आपके सामने दुःख नाम की कोई चीज़ ही नहीं रह जाएगी। परन्तु यह स्थिति तभी होगी जब मन को मालिक मानकर नहीं, सेवक मानकर चलेंगे। चन्द्रमा की सैर करने से भी अधिक सुख की अनुभूति इसमें होगी। भगवान् महावीर ने कहा है-बारह मास का दीक्षित साधु सारे पौद्गलिक सुखों को लांघ जाता है। उसे उस सुख की अनुभूति होती है जो चक्रवर्ती सम्राट को भी नहीं होती। आप अपने जीवन को प्रयोगशाला बनाकर यह निर्णय कीजिए कि जिन मान्यताओं को आप स्वीकार किए हुए हैं, वे काल्पनिक हैं या यथार्थ ? एक बार मन को सेवक मानकर हमें अवश्य परीक्षा करनी चाहिए । मैं आपको यह परामर्श नहीं दे सकता कि आप शरीर-सुख और इन्द्रिय-सुख की ओर सर्वथा ध्यान न दें। किन्तु इतना-सा परामर्श अवश्य दूंगा कि आप मन को सेवक मानकर चलें, स्वामी मानकर नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003076
Book TitleTat Do Pravah Ek
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1967
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size5 MB
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