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प्राथमिकी
मैं दो अचल तटों के मध्य चल प्रवाह को देखता हूँ तब मेरी दष्टि स्थूल के सहारे सूक्ष्म को अवगाह लेती है। तट की सष्टि चल प्रवाह ने की है। यदि अचल के मध्य में कोई चल नहीं होता तो तट दो नहीं होते। जीवन का हर तट किसी प्रवाह के द्वारा सष्ट होता है। ज्ञान का प्रवाह भाषा के तटों से मर्यादित है। कोई भी दीप प्रज्वलन और निर्वाण की मर्यादा से मुक्त नहीं है। पुष्प के अस्तित्व की सीमा उच्छ्वसन और निश्वसन ही नहीं है। हर वस्तु का ध्रुवांश उन्मेष और निमेष के बाद भी शेष रहता है। उर्मियों का उत्पन्न और प्रशान्त होना जल का उत्पन्न और प्रशान्त होना नहीं है । जल की सत्ता उर्मियों की सत्ता के पूर्व और पश्चात्
हमारी मूर्त दृष्टि का पारदर्शी स्फटिक शब्द है। उसमें सत्य प्रतिबिम्बित होता है। देश और काल के व्यवधान में शब्द-राशि ने जिस सत्य का प्रतिबिम्ब ग्रहण किया है, उसमें अपूर्व साम्य है। उस साम्य-दर्शन से ही मैं अभिव्यक्ति की दिशा में गतिशील हुआ हूं।
दो देशों और कालों में भी ध्रुव का प्रवाह एक रहा है। इस अनेकतागत एकता ने मानवीय विकास को बहुत गति दी है। अनेकता और एकता के नैसर्गिक योग में से किसी एक का अभाव दूसरी का भाव
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