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________________ ४० । तट दो : प्रवाह एक नहीं किन्तु पहुंच का तारतम्य है। कोई भी व्यक्ति एक ही डग में चोटी तक नहीं पहुंच सकता । वह धीमे-धीमे आगे बढ़ता है। भगवान् महावीर, ने अहिंसा की पहुंच के कुछ स्तर निर्धारित किए थे। वे वस्तु-स्थिति पर आधारित हैं। उन्होंने हिंसा को तीन भागों में विभक्त किया : १. संकल्पजा २. विरोधजा ३. आरम्भजा संकल्पजा हिंसा आक्रमणात्मक हिंसा है। वह सबके लिए सर्वथा परिहार्य है। विरोधजा हिंसा प्रत्याक्रमण हिंसा है। उसे छोड़ने में वह असमर्थ होता है, जो भौतिक संस्थानों पर अपना अस्तित्व रखना चाहता है। आरम्भजा हिंसा आजीविकात्मक हिंसा है। उसे छोड़ने में वे सब असमर्थ होते हैं, जो भौतिक साधनों के अर्जन-संरक्षण द्वारा अपना जीवन चलाना चाहते हैं। आज चीन संकल्पजा हिंसा या आक्रमणात्मक हिंसा की स्थिति में है और हिन्दुस्तान प्रत्याक्रमण की स्थिति में है। इस स्थिति में भारतीय शासक यह निर्णय कैसे ले सकते हैं कि वे चीनी सैनिकों का सशस्त्र प्रतिरोध न करें। यदि वे ऐसा निर्णय लें तो वे शासक रह ही नहीं सकते । यह निर्णय तो भारत की पैतालीस करोड़ जनता ही ले सकती है कि चीनी जिस गति से आ रहे हैं, उन्हें आने दिया जाए । उनका सशस्त्र प्रतिरोध न किया जाय। यह निर्णय वह तभी ले सकती है, जब भौतिक सत्तासे अपना स्वत्व हटा ले । यदि ऐसा न चाहे, भौतिक सत्ता को बनाए रखना चाहे और उसका संरक्षण चाहे अहिंसा से, यह असम्भव नहीं तो तभी सम्भव है जब सब लोग और सब राष्ट्र आक्रमण को अमानवीय कार्य मानने लग जाएं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003076
Book TitleTat Do Pravah Ek
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1967
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size5 MB
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