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________________ लोकतन्त्र और नागरिक अनुशासन । ३५ सभा की घटनाएं भी अनुशासन के प्रति अनुराग उत्पन्न करने में सफल नहीं हुई हैं। फिर केवल जनता से अनुशासन और समय की आशा कैसी की जाए ? सामंजस्य, समन्वय और सह-अस्तित्व की बात केवल अन्तराष्ट्रीय क्षेत्र में ही अपेक्षित नहीं है। पहले उनकी अपेक्षा राष्ट्र में हैविभिन्न राजनैतिक दलों में है। विशेषतः सार्वजनिक महत्त्व की समस्याओं के समाधान के समय है। लोकतन्त्र अ-लोकतन्त्रीय उपायों से कभी सक्षम नहीं बनता । उसे सक्षम बनाने का प्रत्यक्ष दायित्व जनता पर है, प्रत्यक्षतर विधायकों पर और प्रत्यक्षतम शासकों पर । दायित्व के आधार पर यह स्वतः प्राप्त होता है—जनता अनुशासित हो, विधायक अनुशासिततर और शासक अनुशासिततम । भारतीय जनता का बहुत बड़ा भाग अशिक्षित है। यह कहना कठिन है कि जो अशिक्षित हैं वे अनुशासित नहीं हैं और जो शिक्षित हैं वे अनुशासित हैं । हमारे विद्यालयों में लोकतन्त्र के शिक्षण की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है, इसलिए जनता से विशिष्ट अनुशासन की आशा ही कैसे की जा सकती है? वर्तमान वातावरण में जो परिणाम सामने आ रहे हैं, उनसे भिन्न परिणामों की आशा नहीं की जा सकती। ___ इन घटनाओं की पुनरावृत्तियों से हमें न आश्चर्यचकित होने की ज़रूरत है और न खिन्न होने की, किन्तु एक पाठ लेने की ज़रूरत है। वह है लोकतन्त्रीय शिक्षण की समुचित व्यवस्था । मैं इसमें अधिक सफलता देखता हूं कि हमारा ध्यान वर्तमान की घटनाओं पर ही न अटके किन्तु जिन कारणों से वे घटित हो रही हैं, वहां तक पहुंचे और उनके निवारण में लगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003076
Book TitleTat Do Pravah Ek
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1967
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size5 MB
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