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१२४ । तट दो : प्रवाह एक
शीतलता, स्वाभाविकता और नम्रता से बोलना चाहिए | हँसते हुए बोलने से उसका असर नहीं होता । मधुरता से दिया जाने वाला उपालंभ अधिक ग्राही होता है । 'यह सदा का ही ऐसा है । इसने सदा ऐसा ही किया है' आदि वाक्य कहने से कटुता बढ़ती है । इसके स्थान पर यदि ऐसा कहा जाए कि 'यदि तुम ऐसा करते तो कैसा रहता' तो वह बुरा नहीं मानता। उसे स्वयं अपनी ग़लती अनुभव होने लगती है ।
कहां बोलना चाहिए ?
हां बोलने का अपनी दृष्टि में कोई लाभ हो ।
इस प्रकार खान-पान, रहन-सहन आदि सभी क्रिया-कलापों में इन चार दृष्टियों का प्रयोग करना चाहिए, जिससे उस क्रिया का विवेक मिले ।
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