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१०४ । तट दो : प्रवाह एक है। इस ग्रन्थि से रस कम निकले तो बुढ़ापा आ जाता है। सर्दी अधिक लगती है, भूख कम हो जाती है, शिथिलता और उदासी रहती है। वृषण ग्रन्थि
यह पुरुष के ही होती है । यह अण्डकोषों में होती है। इसके रस-स्राव से पौरुष जागता है और दाढ़ी-मूंछे आती हैं। पैनक्रिया ग्रन्थि
यह दो आँतों के बीच में होती है। एड्रीनल या सुप्रारीनल ग्रन्थि
ये दोनों ग्रन्थियां गुर्दे के ऊपरी हिस्से में होती हैं। इनके स्राव शरीर के लिए बहुत आवश्यक होते हैं। इनसे साहस मिलता है। ये स्राव यकृत की चीनी को रक्त के द्वारा मांसपेशियों में ले जाते हैं। वह मांसपेशियों को जूझने की शक्ति देती है। पैराथाइरायड ग्रन्थि
कण्ठमणि के पास गेहूं के दाने के बरावर चार ग्रन्थियां होती हैं । इन्हें पैराथाइरायड कहा जाता है। ये रक्त में कैलसियम, फासफोरस आदि का उचित संतुलन बनाए रखती हैं। ततीय नेत्र ग्रन्थि ___ यह मस्तिष्क में होती है। यौवन लप्त ग्रन्थि
यह सीने में होती है।
इनका कार्य अज्ञात है। प्रस्तुत विषय का सम्बन्ध वृषण-ग्रन्थियों से है। वीर्य की उत्पत्ति और धाराएं
वृषण ग्रन्थियां दो स्राव उत्पन्न करती हैं बहिःस्राव और अन्तःस्राव। धमनियों द्वारा वृषण-ग्रन्थियों में रस-रक्त आता है। उसे प्राप्त कर दोनों स्रावों के उत्पादक अवयव अपने-अपने स्राव को उत्पन्न करते हैं।
वीर्य अण्डकोष में उत्पन्न होता है। उसकी दो धाराएं हैं । एक वीर्याशय-जो मूत्राशय और मलाशय के मध्य में है—में जाती है। दूसरी रक्त के साथ मिलकर शरीर में दीप्ति, मस्तिष्क में शक्ति, उत्साह आदि पैदा करती है । वीर्याशय भरा रहे तो दूसरी धारा रक्त में अधिक जाती
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