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श्रम और सोना सोनेसे जो चाहें वह मिलता है, इसलिए उसका मूल्य है, धूलका नहीं। इसीलिए सोनेका संग्रह होता है धूलका नहीं। मूल्यका आरोप यदि श्रममें हो, सोनेसे कुछ न मिले तो आज सोनेकी वही गति हो जाये जो धूलकी है ।
भाव और अनुभाव
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