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आलोचना आलोचना जहाँ लोचन है वहाँ निमेष भी है। आलोच्यके लिए वह लोचन है क्योंकि उसके द्वारा आत्मालोकन-विवेक-चक्षके उन्मेषका अवसर मिलता है । आलोचकके लिए आलोचना निमेष है, क्योंकि उसकी दृष्टि आलोचनामें ही गड़ जाती है, फिर वह पारिपाश्विक सत्यको भी नहीं निहार सकता।
भाव और अनुभाव
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