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________________ दो शब्द कल्पनाकी ऊमियाँ अभिनय करती हैं, मन अनन्त भविष्यको अपने बाहुपाशमें जकड़ लेता है। बन्धन और मुक्ति एक क्रम है । भविष्यकी पकड़से मुक्ति पानेवाली पहली कली है 'कल' और दूसरी है 'परसों'। इस कुसुमकी कलियाँ अनन्त हैं । जो खिलती हैं, वह 'आज' बन जाती हैं । सचाई वही है जो आज है। आज 'कल' बनता है, कार्य कृत बन जाता है, अनुभूतियाँ बच रहती हैं। जो चले वह वाहन नहीं होता। वाहन वह होता है, जो दूसरोंको चलाये । अनुभूतिके वाहनपर जो चढ़ चलते हैं, उनका पथ प्रशस्त है । आजकी धार पतली होती है, उसे वही पा सकता है जो सूक्ष्म बन जाये । कलकी लम्बाई-चौड़ाई अमाप्य है। अनुभूतियोंसे बोध पाठ ले, वर्तमानको परखकर चले और कल्पनाओंको सुनहला रूप दिये चले वह विद्वान् है, वह पारखी है और वह है होनहार । 'अनुभव चिन्तन मनन' के बाद यह दूसरी पुस्तक है । गद्य काव्यकी यह धारा आगे चले, यह मैं स्वयं चाहता था और ऐसा सुझाया गया, फलतः इसका निर्माण हो गया। आचार्यश्री तुलसी मेरे लिए प्रकाश-स्तम्भ ही नहीं, महान् प्रेरणा-स्रोत हैं। उनके आशीर्वाद और पथ-दर्शन सदा मेरे साथ रहे हैं । इतस्ततः बिखरे हुए कुछ गद्योंका चयन कर मुनि दुलहराजजीने इसे परिवृद्ध करने का यत्न किया है।। भाव शाश्वत है, सत्य अमिट है। मेरी भाषा उसे अपनेमें प्रतिबिम्बित कर सकी तो उसकी स्वयंमें कृतार्थता होगी। बाल-निकेतन, राजसमन्द -मुनि नथमल २०१७ ज्येष्ठ कृष्णा १४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003075
Book TitleBhav aur Anubhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1965
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size3 MB
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