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ज्योतिर्मय ज्योतिहीन जीवन भी श्रेय नहीं है और ज्योतिहीन मृत्यु भी श्रेय नहीं है। ज्योतिर्मय जीवन भी श्रेय है और ज्योतिर्मय मृत्यु भी श्रेय है। वीर पत्नी विदुलाने अपने पुत्रसे कहा, "बिछौनेपर पड़े-पड़े सड़नेकी अपेक्षा यदि तु एक क्षण भी अपने पराक्रमकी ज्योति प्रकट करके मर जायेगा तो अच्छा होगा।"
भाव और अनुभाव
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