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मौन
समुद्र : जलधर ! जल तूने मुझसे लिया है। आश्रय कहीं है नहीं, तू शून्य विहारी है। आकृतिसे तू श्याम है, फिर भी गरज रहा है ? जलधर : तेरे खारे जलको मीठा बनाकर मैं लोगोंको सन्तुष्ट करता हूँ और वही जल तुझे लौटा देता हूँ। फिर मेरे गर्जनसे तुझे आपत्ति क्यों हो !
जलधर : समुद्र ! पुत्र तेरा कलंकी है, पुत्री है चपल । तू समूचा क्षारमय है फिर तू किस बूतेपर गरज रहा है ? समुद्र : जलधर ! तू भी तो मेरा ही तनुज है - आनन्द देनेवाला, परोपकारपरायण, खारेको मीठा करनेवाला ! तेरे-सरीखे बेटेपर मुझे गर्व है, फिर मुझे गरजनेका अधिकार क्यों न हो ? अब जलधरके पास कहनेको कुछ भी शेष नहीं था।
भाव और अनुभाव
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