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चरम दर्शन
घोड़ा खड़ा रहा, आरोही उड़ चला। नाव पड़ी रही, नाविक उस पार चला गया। पिंजड़ा पड़ा रहा, पंछी उड़ चला। फल लगा रहा, सौरभ चल बसा । बाती धरी रही, ज्योति-पुंज ज्योति-पुंजसे जा मिला।
भाव और अनुभाव
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