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________________ अश्रुवीणा / ७५ भी हो जाती है। धन्यम्-धन्यम्, विद्युताद्योतिताशः आदि में अनुप्रास का सुन्दर प्रयोग हुआ है। इदं शुभ दिनम् धन्यं धन्यं- यह शुभ दिन धन्य है। भगवान के आगमन पर उस दिन की शुभता सिद्ध है। ... विद्युताद्योतिताशः - बिजली के द्वारा दिशाओं को प्रकाशित करने वाला। बादल का विशेषण। आशा = दिशा। दिशस्तु ककुभः काष्ठा आशाश्च हरितश्च ताः (अमरकोश 1.3.1) दिशा, ककुभ काष्ठा आशा और हरित पाँच पर्याय नाम हैं। आ समन्तात् अश्नुते व्याप्नोति । आ उपसर्गपूर्वक 'अशू व्याप्तौ संघाते च धातु' से अच् एवं टाप् प्रत्यय करने पर आशा शब्द बनता है। जो सर्वत्र व्याप्त हो वह आशा दिशा है। उर्वी सिञ्चन्- धरती को सींचते हुए। उर्वी = धरती। सर्वसहा वसुमती वसुधोर्वी वसुंधरा। अमर 2.13 'ऊर्गुब आच्छादने' धातु से उणादि सूत्र महति ह्रस्वश्च ( 1.31 ) से उ प्रत्यय, नुलोप ह्रस्व तथा वोतो गुणवचनात् (पा.4.1.44 ) से डीष् प्रत्यय हुआ है । जो विस्तृत हो, सर्वत्र आच्छादित किए हो वह उर्वी है। ऊोति ऊर्जूयते वा। आचार्य यास्क ने पृथ्वी के इक्कीस नामों में उर्वी का उल्लेख किया है (यास्क-निघण्टु 1.1.10) नवजलधरः - नया बादल । नव शब्द जलधर का विशेषण है। जलधर के साथ मिलकर एक हो गया है। अद्य = आज। कर्षकेन = कृषक के द्वारा । कृष-विलेखने धातु से' ण्वुल् प्रत्यय । तृतीया एकवचन । क्षेत्राजीवः कर्षकश्च कृषीवल ; (अमर. 2.9.6) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003074
Book TitleAshruvina
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size7 MB
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