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६८ । अश्रुवीणा
(६) श्रद्धावृत्तं लिखितमधुनाप्यस्ति वाष्पाम्बुमष्या, भक्त्युरेकाद् द्रवति हृदयं द्रावयेत्तन्न कं कम्। श्रद्धापूता समजनि सती चन्दना वन्दनीया, भक्तिस्नातोऽप्यजनि भगवान् भावनापूर्त्यवन्ध्यः॥
अन्वय - अधुनापि वाष्पाम्बुमष्या श्रद्धावृत्तं लिखितमस्ति। भक्त्युद्रेकात् हृदयं द्रवति । तत् कं कं न द्रावयेत्। श्रद्धापूता सती चन्दना वन्दनीया समजनि। भक्तिस्नातो भगवान् अपि भावनापूर्ति अवन्ध्यः अजनि। ___ अनुवाद - आज भी आँसू रूप स्याही से श्रद्धा का इतिहास लिखा हुआ है। भक्ति (श्रद्धा) के उद्रेक से भक्त का हृदय तो द्रवित होता ही है (वह उद्रेक) अन्य किसको नहीं द्रवित कर देता है? श्रद्धा से पवित्र होकर सती चन्दनबाला वन्दनीया बन गई। भक्ति में भगवान् भी स्नात हुए और उसकी भावना को सफल किया।
व्याख्या - इस श्लोक में श्रद्धा का महत्त्व प्रतिपादित है।
अधुनापि वाष्पाम्बुमष्या श्रद्धावृत्तं लिखितमस्ति-आज भी आँसू रूप स्याही से श्रद्धा का इतिहास लिखा हुआ है। वाष्पाम्बुमष्या' में रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है। जहाँ उपमान और उपमेय में अभेदारोप हो उसे रूपक अलंकार कहते हैं।
अधुना और अपि दो अव्यय पद हैं। अधुना = अभी, आज, इस समय, अपि = भी
श्रद्धावृतम् - श्रद्धा का इतिहास लिखा हुआ है। यहाँ पर मूर्त के धर्म - इतिहास लेखन का आरोप अमूर्त वस्तु श्रद्धा पर आरोपित किया गया है।
भक्त्युद्रेकात् द्रवति हृदयं द्रावयेत् न कम्कम्-भक्ति के उद्रेक से भक्त का हृदय द्रवित हो जाता है। वह उद्रेक भगवान् को भी द्रवित कर देता है। द्रावयेत् न कम् कम्' में अर्थापति अलंकार है। कैमुतिक न्याय एवं दण्डापूपिका न्याय से अर्थापति की सिद्धि होती है।
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