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________________ ६६ / अश्रुवीणा अनुराग है। श्रद्धा कोमल है, सुकुमार है उसका स्नेह सुकुमार के प्रति ही होना चाहिए। लेकिन इसके विपरीत उसका अनुराग कठोर मति वाले व्यक्ति के साथ होती है, यहाँ विरोध प्रतीति हो रही है इसलिए विरोधाभास अलंकार है। विरोधः सोऽविरोधेऽपि विरुद्धत्वेन यद्वचः-मम्मट, काव्यप्रकाश 10.166 विरोध न होने पर भी जहाँ विरोध की प्रतीति हो उसे विरोधाभास अलंकार कहते हैं । यहाँ विरोध भासमान होता है, वस्तुतः विरोध होता नहीं है । वर्णनीय में चमत्कार सामर्थ्य की उत्पत्ति के लिए कवि विरोधमूलक वर्णन करता है। श्रद्धा कोमल स्वभावा है परन्तु प्रेम कठोर व्यक्तियों से करती है - यहाँ विरोध की प्रतीति मात्र है, वास्तविक विरोध नहीं है। श्रद्धा उन्हीं का वरण करती है जो स्थिर मति वाले हैं। सुख-दुःख में अडोल रहने वाले हैं । यह विरोध परिहार है। वह कोमल है' ऐसा कारण विद्यमान होने पर भी कोमल व्यक्ति से अनुराग रूप कार्य का सम्पादन नहीं हो रहा है। कारण होने पर भी कार्य का नहीं होना विशेषोक्ति अलंकार है - विशेषोक्ति रखण्डेषु कारणेषु फलावचः काव्यप्रकाश 10.165 दृढ़मति वाले, अडोल एवं कठोर व्यक्तियों के साथ वह अनुराग करती है - यह कार्य है, श्रद्धा में कठोरता का होना कारण बनता है। श्रद्धा कठोर नहीं है - कारण का अभाव है फिर भी कठोरमति वाले के प्रति अनुराग रूप कार्य हो रहा है। कारण के अभाव में कार्य का होना विभावना अलंकार है। क्रियायाः प्रतिषेधेऽपि फलव्यक्तिः विभावना काव्यप्रकाश 10.162 कष्टोन्मेषे - कष्टोद्रेके । कष्ट के उन्मेष होने पर। उन्मेष शब्द जागना, फैलना, प्रकाश, दीप्ति आदि का वाचक है। कष्टाधिक्य के प्रतिपादन के लिए उन्मेष शब्द का प्रयोग हुआ है। दु:ख के भँवर में। दृढ़तममतौ मानवे - दृढ़मति वाले मनुष्य में अनुराग करती है। श्रद्धा उसी का वरण करती है जो अडिग होते हैं । सुख-दुःख में समान रहते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003074
Book TitleAshruvina
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size7 MB
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