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________________ ३२ / अश्रुवीणा आँसू ही विपत्काल के मित्र हैं सार्थञ्चैकोऽनुभवति विपद्भारमोक्षश्च युष्मा ल्लब्ध्वा नान्यो भवति शरणं तत्र यूयं सहायाः।" आँसू अमोघशक्ति सम्पन्न हैं । जिसे संसार की कोई शक्ति नहीं रोक सकती वे भी आंसू की धारा में बह जाते हैं । भक्तिमती चन्दना कहती है- हे आँसू! जिन्हें कोई रोक नहीं सकता वे भी तुम्हारे लघु-प्रवाह में सहसा डूब जाते हैं। तुम्हारे अन्दर में कोई अद्भुत शक्ति है इसे सब जानते हैं चित्राशक्तिः सकलविदिता हन्त ! युष्मासु भाति, रोद्धं यान्नाक्षमत पृतना नापि कुन्ताग्रमुग्रम्। खातं गर्ता गहनगहनं पर्वतश्चापगाऽपि, मग्नाः सद्यो वहति विरलं तेऽपि युष्मत्प्रवाहे । आँसू हृदय को आर्द्र करते हैं और आर्द्र हृदय के सजीव भाव अनुलझ्य होते हैं। आँसू का हृदय के साथ पूर्ण योग होता है । हृदय ही आँसू के रूप में बहने लगता है । वह बहाव कितना सशक्त होता है उसे महाप्रज्ञ या महावीर जैसे व्यक्ति ही समझ सकते हैं। 11. दूत की कुलीनता एवं उसके सामर्थ्य पर विश्वास-प्राय: सभी गीतिकाव्यों में दौत्यकार्य का निरूपण होता है । गीति-काव्य का पात्र विरह-वेदना के कारण साधारणीकरण की भूमिका में पहुँचकर चेतनाचेतन विभेद में प्रकृतिकृपण हो जाता है। वहां पशु जगत्, रात्रि, मेघ या आँसू आदि से दौत्य कार्य करवाया जाता है। वहां शङ्का का स्थान नहीं होता है। दूत की कुलीनता एवं उसके सामर्थ्य पर पूर्ण विश्वास होता है। महाकवि कालिदास का यक्ष मेघ को दूत बनाता है। उसका मेघ धूम, ज्योति-सलिल-मरुतादि का सन्निपात मात्र नहीं बल्कि वह इन्द्र का प्रधान-पुरुष है, प्राणियों का जीवनदाता है। उसका जन्म श्रेष्ठ पुष्करावर्त कुल में हुआ है । यक्ष को पूर्ण विश्वास है कि उसका दूत उसके सन्देश को उसकी प्रियतमा के पास ले जाएगा तथा प्रिया के कुशल-क्षेम के द्वारा प्रातः कुन्द-प्रसव के समान शिथिल यक्ष-जीवन को भी सहारा देगा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003074
Book TitleAshruvina
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size7 MB
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