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________________ १४२ / अश्रुवीणा हैं। मुर्झाना खीलना यह सृष्टि का क्रम है लेकिन यह (अभागिन चन्दन बाला) केवल मुर्झायी ही रही । व्याख्या- इसमें कवि के सृष्टि के नियम दुःख-सुख के क्रम का सुन्दर उद्घाटन किया है। दुःख के बाद व्यक्ति सुख को प्राप्त करता है लेकिन बेचारी चन्दना के भाग्य में केवल दुःख ही रहा । इमे-ये, अम्भोबाहा-जलधर, मेघ, विघटन - टूटना, श्रृम्भण = बढ़ना । यहाँ स्वाभावोक्ति अलंकार है। सृष्टि के सहज रूप का वर्णन है। विरोध अलंकार भी है। (६८) यत् सापेक्षा जगति पुरुषैर्योषितः शक्तिमद्भिः, सन्ति प्राप्तास्तत इह चिरं भोग्य वस्तुप्रतिष्ठाम् । चेतोदार्थं प्रकृतिसुलभस्त्याग-भावोऽपि तासामेधोभावं व्रजति सततं कामवह्नौ नराणाम्॥ अन्वय-यत् जगति शक्तिमद्भिः पुरुषैः योषितः सापेक्षा तत इह चिरम् भोग्य वस्तु प्रतिष्ठाम् प्राप्ताः । तासाम् चेतोदार्ढ्यम् प्रकृति सुलभ स्त्याग भावोऽपि नराणाम् कामवह्नौ सततम् एधोभावं व्रजति । अनुवाद - चूंकि संसार में शक्तिमान् पुरुषों द्वारा स्त्रियाँ सापेक्ष होती हैं (अधीन रहती हैं) इसलिए यहां पर चिरकाल से (स्त्रियां) भोग्य वस्तु के रूप में प्रतिष्ठित हो गयी हैं (बन गई हैं) उनकी मानसिक दृढ़ता एवं स्वभाव सुलभ त्याग भावना मनुष्यों की कामाग्नि में हमेशा ईंधन का कार्य करती हैं 1 व्याख्या - इस श्लोक में महिलाओं की निसर्ग कोमल वृत्ति एवं उनकी त्यागभावना का उद्घाटन हुआ है। जहाँ पर अधिक कोमलता और त्यागवृत्ति होती है वहां शोषण बढ़ जाता है। महिलाओं के साथ भी यही हुआ । रूपक, काव्यलिंग आदि अलंकार हैं । कामवह्नौ एवं भोग्य वस्तु में रूपक है । सापेक्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003074
Book TitleAshruvina
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size7 MB
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