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अश्रुवीणा / १३१
(५६) राज्यं त्यक्तुं परनृपतिना पार वश्यं प्रणीता, प्राणान्तोऽपि स्फुटितनयनैरेभिरालोकि मातुः। वेश्याहर्येऽप्यरुचिगमनं प्रापिता विक्रयेण, विक्रेत्राह विपणिसरणौ मूल्यमायोजि भूयः॥
(५७) बद्धा क्रूरं करचरणयोः श्रृंखलैरायसैहा, मूर्ति प्राप्ता विकचशिरसि प्रज्वलन्त्यः शलाकाः। कष्टाश्रूणां सरिति सततं मनमास्यं विलोक्य, त्वां यत्फुल्लं तदपि भगवन्! न त्वया द्रष्टुमिष्टम्॥ (युग्मम्)
अन्वय- पर नृपतिना राज्यं त्यक्तुम् पारवश्यं प्रणीता। एभिः स्फुरित नयनैः मातुः प्राणान्तोऽपि आलोकि। विक्रयेण वेश्याहर्म्य अरुचिगमनम् अपि प्राप्रिता। भूयः विक्रेत्राहम् मूल्यमायोजि। आयसैः शृंखलैः कर चरणयोः क्रुरम् बद्धा । हा मूर्तिं प्राप्ता। विकच शिरसि प्रज्वलन्त्यः शलाकाः। कष्टाश्रूणां सरिति आस्यम् सततम् मग्नम्। भगवन्! त्वाम् विलोक्य यत्फुल्लम् तदपि न त्वया द्रष्टुमिष्टम्।
अनुवाद- शत्रु राजा (शतानीक) ने राज्य छोड़ने के लिए मुझे अधीन कर लिया। अपनी स्फुट आँखों से माता को मरते हुए भी देखा । न चाहते हुए भी वेश्या के घर बिक जाना पड़ा। पुनः बाजार में बेचने के लिए मेरा मूल्य लगाया गया। लौह शृंखलाओं से मेरे हाथ-पैर को कठोरता से बाँध दिया गया। हाय मैं मूर्ति रूप हो गयी। मुण्डित माथे पर प्रज्वलित शलाकाओं (से दागा गया) इस प्रकार दु:ख के आँसुओ की सरिता में मेरा मुख हमेशा निमग्न रहा। भगवान् आपको देखकर जो (दुःखी) आँखे खिल गयीं, उन्हें भी देखना आपने उचित नहीं समझा।
व्याख्या- यहां पर 56-57 श्लोक युग्म हैं । एक वाक्य यदि दो श्लोकों में समाप्त हो उसे युग्म या युग्मक कहते हैं।
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