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________________ एतस्य काव्यस्य सम्यग् गुणकीर्तनासमर्था वयम्। यदि कस्यचिदत्र चित्तं श्रद्धया समावर्जितं भवेत्तदात्मानं कृतार्थं मस्यामह इत्यलं प्रपञ्जेनेति निवेदयति विदुषामाश्रवः कलिकाता दिनांक 30-6-59 श्री सातकड़िमुखोपाध्यायशर्मा निदेशक नवनालन्दामहाविहारस्य, नालन्दा भूतपूर्वाध्यक्ष कलिकाता विश्वविद्यालय संस्कृतविभागस्य । प्रस्तावना (पूर्व संस्करण से) आचार्यवर्य श्री तुलसीगणी के कृपापात्र अन्तेवासी मुनि श्री नथमलजी द्वारा विरचित "अश्रु वीणा' नामक काव्य स्वयं कवि के मुखारविन्द से सुनने का मुझे अवसर प्राप्त हुआ, इसे मैं अपना परम सौभाग्य मानता हूँ तथा मेरे अन्तः करण को इससे अपरिमित आनन्द मिला । मन्दाक्रान्ता छन्द में रचा गया यह सौ श्लोकों का खण्ड काव्य है, जो प्राचीन ख्यातनामा विश्व-विश्रुत-कीर्ति भर्तृहरि आदि द्वारा रचित शतक काव्यों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम है । मन्दाक्रान्ता महाकवि कालिदास का अभीप्सित छन्द है, प्राचीन साहित्य के मर्मज्ञ यों कहते हैं। इसी छन्द में कविकुल शिरोमणि ने 'मेघदूत' नामक खण्ड काव्य की रचना की।आज भी संसार में उसका व्यापक प्रचार है। इसी काव्य का एक-एक चरण लेकर आर्हत् सिद्धान्त प्रख्यापित करने के आकांक्षी जैन कवि श्री विक्रम ने 'नेमिदूत' नामक धर्मकाव्य रचा। इस समय मुनिवर श्री नथमलजी द्वारा विरचित यह काव्य (अश्रुवीणा) जैन साहित्य में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त करेगा, ऐसा कहने में मुझे अतिरंजन नहीं लगता। प्रस्तुत काव्य में जहाँ एक ओर शब्दों का वैभव है, वहाँ दूसरी ओर अर्थ की गम्भीरता है। इसमें शब्दालंकार और अर्थालंकार एक दूसरे से बढ़े-चढ़े हैं। भक्ति-रस से परिपूर्ण, उदात्त कथावस्तु का आलम्बन कर यह लिखा गया है। सहृदयों, काव्यानुरागियों, तत्त्वजिज्ञासुओं, धर्म का रहस्य पाने की आकांक्षा वालों-निःसन्देह इन सबमें समान रूप से यह अश्रुवीणा Jain Education International For Private & Personal Use Only (iii) www.jainelibrary.org
SR No.003074
Book TitleAshruvina
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size7 MB
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