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१३० : एसो पंच णमोक्कारो
पकाए या सोने को पिघाले—दोनों में आंच आवश्यक होती है। केवल आंच की तीव्रता या मंदता, काल की ह्रस्वता या दीर्घता का अन्तर आता है। किसके लिए कितनी आंच चाहिए, यह जानना आवश्यक है।
प्रश्न-कायोत्सर्ग और ध्यान में क्या अन्तर है? क्या कायोत्सर्ग ध्यान में परिवर्तित हो सकता है ?
उत्तर-कायोत्सर्ग ध्यान की पृष्ठभूमि है। बिना कायोत्सर्ग सधे, ध्यान सफल नहीं हो सकता। ध्यान के लिए कायोत्सर्ग अनिवार्य है। जब तक आसन स्थिर नहीं, वाणी का विसर्जन नहीं, मन का शिथिलीकरण नहीं, श्वास शांत नहीं, तब तक ध्यान की स्थिति नहीं बनती। कायोत्सर्ग ध्यान का पहला चरण है। उसे कायिक ध्यान भी कहा जाता है। जब कायिक ध्यान सध जाता है, वाचिक ध्यान (मौन) सध जाता है, तब मानसिक ध्यान अपने-आप सध जाता है।
प्रश्न—क्या सम्मोहन (हिप्नोटिज्म) कायोत्सर्ग का ही एक अंग है ?
उत्तर-नहीं। सम्मोहन भिन्न वस्तु है और कायोत्सर्ग भिन्न वस्तु है। सम्मोहन चमत्कार है। उससे व्यक्ति को मूढ़ बनाया जा सकता है। मूलतः सम्मोहन करने वाले व्यक्ति की शक्तियां बहुत क्षीण हो जाती हैं। जिस व्यक्तिं पर सम्मोहन का प्रयोग किया जाता है, उसकी शक्तियां बहुत क्षीण होती हैं। अन्ततः कुश्ती करनेवाले व्यक्ति की-सी स्थिति बन जाती है। मल्ल पहले बहुत बलवान् होते हैं, किन्तु पचास को पार कर जाने पर शक्तिहीन हो जाते हैं। सम्मोहन की भी यही स्थिति है। यह बहुत उपयोगी प्रक्रिया नहीं है।
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