________________
158
समयसार : निश्चय और व्यवहार की यात्रा
पूछते हैं मैं कौन हूं ? उनसे मैं कहता हूं यह प्रश्न पूछो कि मैं कहां हूं? मेरी चेतना कहां है? यदि हमारी चेतना नाभि से नीचे है तो वह ज्यादा खतरनाक है। अंतर्मुखता का अर्थ है चेतना को नीचे से ऊपर ले जाना, बाहर से भीतर ले जाना, पदार्थों से निकाल कर अपने स्वरूप में अवस्थित कर देना । इस स्थिति की उपलब्धि का मार्ग है अंतर्यात्रा, सुषुम्ना की यात्रा | यह भीतर जाने का रास्ता है। जब तक हमारी चेतना इस मध्य मार्ग से ऊपर नहीं जाएगी तब तक हमारा बाहरी आकर्षण कम नहीं होगा ।
-
संवेदना केन्द्र को निष्क्रिय बनाएं
प्रश्न है संवेदना केन्द्र को निष्क्रिय बनाने का । पैर में कांटा चुभा । दर्द किसके हुआ ? क्या पैर को दर्द हुआ ? पैर में कांटा चुभा, इसका संदेश जब तक मस्तिष्क तक नहीं पहुंचता तब तक पीड़ा का अनुभव नहीं हो सकता। संवेदन केन्द्र तक सूचना पहुंच जाती है, तब पीड़ा की अनुभूति होती है। एनेस्थेसिया का प्रयोग क्या है ? किसी व्यक्ति का ऑपरेशन करना है । उसे मूर्च्छित कर दिया जाता है। उसे दर्द का पता नहीं चलता। यही बात मूर्च्छा की है। जब मूर्च्छा का केन्द्र सक्रिय बनता है, व्यक्ति राग-द्वेष से भर जाता है। अंतर्यात्रा का प्रयोग मूर्च्छा के केन्द्र को निष्क्रिय बनाने का प्रयोग है। जब मूर्च्छा केन्द्र निष्क्रिय बन जाता है, तब कोरा ज्ञान रहता है, पदार्थ या घटना के साथ मूर्च्छा की चेतना नहीं जुड़ती ।
भीतरी सुख का अनुभव करें
अंतर्यात्रा चेतना को ऊपर ले जाने का प्रयोग है। यह प्रयोग जितना अच्छा सधेगा, इन्द्रियां अपना काम करेगी किन्तु उनके साथ राग-द्वेष का जुड़ना बंद हो जायेगा ।
-
अंतर्यात्रा का यह प्रयोग आत्म-दर्शन का प्रयोग है, ज्ञाता द्रष्टा बनने का प्रयोग है। जरूरी है अभ्यास का नैरन्तर्य । जब हमारी चेतना ऊपर जाती है, वाइटल एनर्जी ऊपर जाती है तब इतने सुखद प्रकंपन पैदा होते हैं, जिनकी कल्पना नहीं की जा सकती। यह निश्चित है- जब तक भीतर का सुख नहीं प्रगटेगा तब तक बाह्य सुख छूट नहीं पाएगा। हमें उस सुख की अनुभूति करना है, जिससे बाह्य सुख को त्यागने वाली चेतना प्रगट हो जाए। इसका मार्ग है अंतर्यात्रा । यदि हम इस प्रयोग - पथ को अपना सके तो 'आत्मा के द्वारा आत्मा को देखें, यह सूत्र विरोधाभासी नहीं रहेगा, यथार्थ बन जाएगा।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
O
www.jainelibrary.org