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________________ आत्मा को कैसे देखें? प्रेक्षाध्यान का ध्येय सूत्र है - आत्मा के द्वारा आत्मा को देखें। यह बड़ी विरोधाभासी बात लगती है। आत्मा है अमूर्त और हमारे पास शक्ति है इन्द्रियों की। इस स्थिति में हम देखें कैसे? यह एक प्रश्न है। प्रश्न यह भी है - हम ध्यान कर रहे हैं या विरोधाभास को पाल रहे हैं। जो हम कह रहे हैं, वह केवल तोता रटंत है या उसकी कोई सार्थकता है। क्या हमारे पास ऐसी कोई विधि है, जिसके द्वारा हम आत्मा को देख सकते हैं? आत्मा का स्वरूप आत्मा का स्वरूप है अशब्द, अगंध, अरस और अरूप, जिसमें न कोई शब्द है, न कोई गंध है, न कोई रस है और न कोई स्पर्श है। वह केवल ज्ञान और चैतन्यमय सत्ता है। अरसमरूवमगंध, अव्वत्तं चेदणागुणमसइं। जाण अलिंगरगहणं, जीवमणिद्दिट्ठसंठाणं।। जीवस्य णत्थि वण्णो ण वि गंधो ण रसो ण वि य फासो। ण वि रूवं ण सरीरं ण वि संठाणं ण संहणणं।। हमारी इन्द्रियां जानती है शब्द को, रूप को, गंध, रस और स्पर्श को और हमारी आत्मा है अशब्दात्मक, अरूपात्मक। हम उसे कैसे देखें? इस प्रश्न का समाधान भी उपलब्ध होता है- हम उन क्षणों का अनुभव करें, जिन क्षणों में अरूप बन जाएं। आंख खुली है, रूप को देख रहे हैं। आंख बंद की, रूप दिखना बंद हो गया। कान भी बंद किया, अशब्द हो गया। नाक को बंद किया, अगंध हो गया। जीभ पर कुछ भी नहीं डाला, अरस हो गया। किसी को छुआ नहीं, अकेले में रहे, अस्पर्श योग हो गया। चेतना की दिशा बदलें प्रश्न उभरता है - क्या ऐसी स्थिति किसी के लिए भी संभव है? यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003072
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
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