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संकलिका | 137
• भावो रागादिजुदो जीवेण कदो दु बंधगो भणिदो।
रागादि विप्पमुक्को, अबंधगो जाणगो णवरि।। • रागम्हि दोसम्हि य कसायकम्मेसु चेव जे भावा। तेहिं दु परिणमंतो रागादी बंधदे चेदा।।
(समयसार - १६७, २८२) • वाटसन का कथन • परिस्थिति का मूल्य • आनुवंशिकी विज्ञान और कर्मवाद • दो मूल वृत्तियां
जीवन मूल प्रवृत्ति : मृत्युमूल प्रवृत्ति
राग की वृत्ति : द्वेष की वृत्ति • वृत्ति और बंध • प्रवृत्ति की प्रेरणा है वृत्ति • राग, द्वेष और मोह से जड़ा अज्ञान : मिथ्या आचरण
राग, द्वेष और मोह से विमुक्त ज्ञान : सम्यग् आचरण • ज्ञान : बंधन • चैतसिक परिणति के तीन रूप
वर्धमान हीयमान
अवस्थित • परिष्कार का मार्ग
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