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________________ परिष्कार करें : लड़ें नहीं 119 नहीं है, उसके अभिभावक भी हैं। यदि बच्चे को प्रारम्भ से ही सहिष्णुता की शिक्षा दी जाए, शरीर को साधने का उपक्रम सिखाया जाए तो वह कभी असहिष्ण नहीं बन पाए। अभिभावक सोचते हैं- लड़के को अच्छी तरह पढ़ा दें ताकि वह अच्छी कमाई कर सके लेकिन वे यह नहीं सोचतेक्या पैसा कमाना ही जीवन का उद्देश्य है? वह वरदान नहीं. अभिशाप भी बन सकता है। जीवन का निर्माण नहीं किया, जीवन जीने की कला नहीं सिखाई तो मानना चाहिए- बन्दर के हाथ में तलवार थमा दी गई है। जो व्यक्ति अपने बच्चे के जीवन-निर्माण पर ध्यान नहीं देता और उसे जीविका की तलवार पकड़ा देता है तो कभी-कभी वह तलवार उसके गले पर भी चल जाती है। जीवन-निर्माण का सूत्र हम ध्यान दें जीवन-निर्माण पर। जीवन-निर्माण का सूत्र है ध्यान। ध्यान का प्रयोग जीविका के लिए नहीं है, जीवन-निर्माण के लिए है। जब जीवन का निर्माण होता है तब जीविका की बात भी पीछे नहीं रहती। ध्यान के द्वारा दक्षता बढ़ती है, शक्ति बढ़ती है, स्मृति बढ़ती है, चातुर्य आता है किन्तु इन सबसे महत्त्वपूर्ण जो उपलब्धि ध्यान के द्वारा प्राप्त होती है, वह है जीवन-निर्माण। जीवन का निर्माण होता है तो शान्त सहवास की समस्याएं, आग्रह और रुचि-भेद की समस्याएं, विचार भेद और विरोधाभास की समस्याएं, निषेधात्मक भाव की समस्याएं समाहित हो जाती हैं। ध्यान से जागरण होता है विधायक विचार का, मैत्री भाव का, सबके प्रति सम्मान की भावना का और सामंजस्यपूर्ण चेतना का। जब चेतना की यह स्थिति बनती है तब पारिवारिक और सामाजिक जीवन बहत सखद बन जाता है। इन सबकी उपलब्धि के लिए जरूरी है- ध्यान का प्रशिक्षण। ध्यान आध्यात्मिक जीवन के लिए ही नहीं, पारिवारिक और सामाजिक जीवन के लिए भी अनिवार्य है। यह एक सचाई है। इस सचाई को समझने वाला प्रत्येक व्यक्ति परिष्कार के सत्र खोजेगा, अपने जीवन-निर्माण पर ध्यान देगा। जो परिष्कार की बात सोचता है, वह अभय का मंत्र सीख लेता है। रुचि परिष्कार का सत्र है- कामना का परिष्कार। काम-परिष्कार होने पर ही रुचि-परिष्कार का सूत्र हस्तगत हो सकता है, रुचि-भेद से उत्पन्न विग्रह को समाप्त किया जा सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003072
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
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