________________
'शांतिपूर्ण सहवास कैसे?
हमारे जीवन के शब्दकोष का सबसे मूल्यवान् शब्द है- शांति। अगर उसे निकाल दिया जाए तो हमारा जीवन भी नहीं बचेगा। यदि बचेगा तो ऐसा बचेगा, जिसे कोई जीना भी पसंद नहीं करेगा। पैसे और रोटी का, घर और कपड़े का या अन्य पदार्थों का मल्य तभी है जब मन में शांति है। शांति नहीं होती है तो सारे मूल्य मूल्यहीन बन जाते हैं। कुछ दिन पूर्व मैं एक परिवार से बातचीत कर रहा था। मां ने पत्र की ओर इशारा करते हुए कहा- महाराज! मेरे इस लड़के को गुस्सा बहुत आता है, यह कैसे कम हो सकता है? जब आवेग आता है, बेकाब हो जाता है, बेहाल हो जाता है। जब जब इसे गस्सा आता है, परिवार का पूरा वातावरण अशांत बन जाता है। जब आदमी आवेश करता है तब उसे स्वयं को अच्छा भी लग सकता है पर दूसरे को वह बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। शांति नहीं होती है तो सचमुच परिवार की स्थिति गड़बड़ा जाती है। क्रोध : क्रोधी
दो शब्द हैं- क्रोध और क्रोधी। क्रोध एक आवेश है और क्रोधी है क्रोध करने वाला। जब क्रोध की विकट स्थिति आती है, उस समय व्यक्ति क्रोधी नहीं बल्कि स्वयं क्रोध बन जाता है। समयसार का एक सूत्र है
कोहुवजुत्तो कोहो, माणवजुत्तो य माणमेवादा।
माउवजुत्तो माया, लोहवजत्तो हवदि लोहो।। क्रोध में उपयुक्त आत्मा क्रोध है, मान में उपयुक्त आत्मा मान है, माया में उपयुक्त आत्मा माया है, लोभ में उपयुक्त आत्मा लोभ है।
जब आत्मा क्रोध में उपयुक्त होती है, स्वयं क्रोध बन जाती है। कभी कभी क्रोध का ऐसा विकराल रूप आता है कि व्यक्ति का पूरा शरीर क्रोधमय बन जाता है। राजस्थान पुलिस एकेडेमी में प्रेक्षाध्यान शिविर चल रहा था। उसमें पलिस के अनेक वरिष्ठ अधिकारी भाग ले रहे थे। उनमें एक सब-इंसपेक्टर थे। वे क्रोध की समस्या से परेशान थे। उन्हें देखकर ऐसा लगता था- यदि किसी को तनाव देखना हो तो इस अधिकारी का चेहरा देखो। तनाव की परिभाषा करने की जरूरत नहीं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org