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संकलिका | 8
• अहमेक्को खलु सुद्धो, णाणदंसणसमग्गो। तम्हि ठिदो तच्चित्तो, सव्वे एदेखयं णेमि।।
(समयसार- ७३) • एगो में सासओ अप्पा णाणदंसणलक्षणो।
सेसा में बाहिरा भावा सव्वे संजोगलक्षणा। • प्रश्न शान्त सहवास का • चेतना का परिष्कार • चेतना के दो रूप
व्यक्ति चेतना
सामुदायिक चेतना • व्यक्ति चेतना के दो अर्थ
अध्यात्म चेतना : परमार्थ चेतना
स्वार्थ चेतना • सामाजिक चेतना की सीमा • अध्यात्म चेतना की सीमा • संयुक्त परिवार : विघटन का कारण • शांतिपूर्ण सहवास का सूत्र : अध्यात्म चेतना का विकास
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