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कर्म-फल भोगने की कला सकता पर देख तो सकता हूं।
जिसे कठिनाइयों को भोगने की विधायक दृष्टि प्राप्त हो जाती है, वह सचमुच धर्म की कला को जान लेता है, कर्म-फल भोगने की कला को जान लेता है। किस प्रकार सुख की अवस्था में गर्व से मुक्त रहें और किस प्रकार दःख की अवस्था में प्रसन्न बने रहें, दीन-हीन न बनें-यह छोटी-सी बात समझ में आ जाती है तो मानना चाहिए- जीवन जीने की सबसे बड़ी कला समझ में आ गई। जीवन जीने का यह दृष्टिकोण आचार्य कन्दकन्द-प्रणीत समयसार से सहज फलित होता है।
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