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________________ ६६ । मुक्त भोग की समस्या और ब्रह्मचर्य एक आलंबन मिला स्वाध्याय का। व्यक्ति ने संकल्प किया-प्रतिदिन पांच घंटा स्वाध्याय में लगाना है। इस सूत्र को पकड़कर वह स्वाध्याय में लग गया। दिन भर उठने वाले बुरे विचार, बुरी कल्पनाएं बंद हो गईं। जो मन बुरी दिशा में जा रहा था, उसका उन्नयन हो गया, उदात्तीकरण हो गया। बुराई से बचने के लिए वृत्ति का रूपांतरण करना उदात्तीकरण है। आत्मयुद्ध : अध्यात्म के सूत्र बुराई से बचाने का मतलब है अपने आप से लड़ना, अपने आपसे संघर्ष करना, युद्ध करना । अध्यात्म में बुराई से निवृत्त होने के अनेक उपाय निर्दिष्ट हैं संकल्प: शमनं, ज्ञातृद्रष्टभावविभावनम् । स्मरणं प्रतिक्रमणं, युद्धं पंचविधं स्मृतम् ।। आत्मयुद्ध के पांच प्रकार हैं• संकल्प शमन • ज्ञाता-द्रष्टा भाव • स्मरण • प्रतिक्रमण आत्मयुद्ध का पहला प्रकार है-संकल्प। संकल्प का प्रयोग करना यानी अपनी संकल्प शक्ति को बढ़ा लेना, जिससे व्यक्ति इन्द्रियों और संवेगों के साथ लड़ सके, कषायों के साथ युद्ध कर सके । 'इयाणिं नो' अब नहीं करूंगा, यह संकल्प आत्म युद्ध का पहला अस्त्र है। जिस व्यक्ति को यह अस्त्र प्राप्त होता है. वह अपने आपको बचा सकता है। आत्मयुद्ध का दूसरा प्रकार है-शमन करना। जैसे मनोविज्ञान में दो प्रक्रियाएं निर्दिष्ट हैं वैसे ही अध्यात्म के क्षेत्र में भी दो प्रक्रियाएं हैं—एक उपशमन की प्रक्रिया और दूसरी क्षयीकरण की प्रक्रिया। शमन का निदर्शन मनोविज्ञान में दबाने की प्रक्रिया बतलाई गई है। अध्यात्म के क्षेत्र में भी दबाने की प्रक्रिया मान्य है। किसी वृत्ति का एक साथ क्षय हो जाए, यह जरूरी नहीं है। उसका क्षय न हो तो कम से कम उसे खुला मत छोड़ो, उसका नियंत्रण करो, दबाओ। दबाने से भी वृत्ति में बड़ा अन्तर आ सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003071
Book TitleMukta Bhog ki Samasya aur Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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