SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ब्रह्मचर्य के साधक-बाधक तत्त्व | ३९ विचलित नहीं हुआ। चौथे दिन उसने वेश्या का स्पर्श किया, उसके शरीर से सटकर बैठ गया फिर भी मन विचलित नहीं हुआ। कुछ दिन ऐसा अभ्यास चला। उसके बाद उसने वेश्या को अर्द्धनग्न अवस्था में देखा और एक दिन वेश्या को निर्वस्त्र कर अपनी गोद में बिठा लिया। उसका मन अडोल बना रहा। ब्रह्मचर्य सिद्ध हो गया। - इस घटना का निष्कर्ष निकाला गया—वह व्यक्ति संन्यासी होना चाहता था इसलिए अपने आपको साध रहा था। हम इस प्रश्न पर विचार करें और अपनी परिपक्वता को बढ़ाएं। इस दृष्टि से जो महत्त्वपूर्ण नियम हैं, उनमें से कुछ पर विमर्श करें, यह अपेक्षित है। आहार और ब्रह्मचर्य ___ भोजन के संदर्भ में दो नियम हैं—प्रणीत और अतिमात्र भोजन न करें । शायद ही अध्यात्म का कोई ऐसा विषय होगा, जिसके साथ भोजन की बात न जुड़ी हुई हो। भोजन बहुत प्रभावित करता है। तंत्र-शास्त्र में इस विषय पर बहुत नई दृष्टियां मिलती हैं। एक नया दर्शन तंत्र-शास्त्र में दिया गया-पांच ज्ञानेन्द्रियों के साथ पांच कामेन्द्रियों का सम्बन्ध है। उपस्थ का सम्बन्ध है जीभ के साथ । रसनेन्द्रिय को जितना पोषण मिलेगा उतना पोषण मिलेगा जननेन्द्रिय को ।रसनेन्द्रिय और जननेन्द्रिय में गहरा सम्बन्ध है इसलिए ब्रह्मचर्य के संदर्भ में भोजन पर विचार करना बहुत जरूरी है। बहुत मनन के बाद यह नियम बनाया गया-प्रणीत पान-भोजन का वर्जन करें और अतिमात्र. भोजन का वर्जन करें। ज्यादा भी न खाएं और रोज-रोज गरिष्ठ भोजन भी न करें । दूध, दही, घी आदि जितनी भी विकृतियां हैं, वे शरीर के लिए आवश्यक भी होती हैं किन्तु वे बाधक भी बनती हैं। आयुर्वेद का एक सिद्धांत है-बल बढ़ाना है तो दध पीओ। दसरा सिद्धांत यह आया है—दूध मनुष्य के लिए आवश्यक नहीं है, वह केवल बच्चों के लिए आवश्यक है। दूध हृदय-रोग को भी बढ़ाता है। किसे सच माने? दुनिया में विचारों की इतनी संकुलता है कि किसे स्वीकारा जाए और किसे अस्वीकारा जाए? एक विचार को पकड़कर बैठ जाएं तो बड़ी समस्या हो जाती है इसीलिए यह कहा गया—यत् सारभूतं तदुपासनीयम्-जो सारभूत है, उसकी उपासना करें। ध्यान दें उपादान पर अनेकान्त दर्शन का तात्पर्य है-हम किसी एक विचार को पूरा सत्य मानकर न बैठें। हम यह मानें-निया में विचारों की बहत संकलता है। समाधान यही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003071
Book TitleMukta Bhog ki Samasya aur Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy