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________________ चिर यौवन का रहस्य | १५७ से दीखने पर जीवन सुखद रूप से कट जाएगा।' मंत्री अनुभवी था। उसने डिबिया ली। एक आंख में सुरमा आंजा। कुछ ही क्षणों बाद उसकी एक आंख प्रकाशित हो गई । उसको दीखने लगा । जो शेष सुरमा बचा था, उसने अपनी दूसरी आंख में नहीं आंजा, किन्तु जीभ पर रख लिया । स्वाद से उसने सुरमे के सारे द्रव्यों का विश्लेषण कर लिया । घर जाकर वैसा ही सुरमा बनाया। परीक्षण के लिए अपनी दूसरी आंख में उसे आंजा । आंख खुल गई । वह सूझता हो गया। न वह अंधा रहा और न काना । उसने शेष सुरमा डिबिया में भरकर दूत से कहा—'जाओ, अपने सम्राट से कहना कि उन्हें ऐसा सुरमा जितना चाहे यहां से मंगा ले।' दूत गया। सम्राट को सारा वृतान्त सुनाया। सम्राट ने सोचा-जिस देश में ऐसे अनुभवी और वृद्ध रहते हैं, इतने बुद्धिमान मंत्री हैं, उस देश पर आक्रमण करना भयंकर भूल होगी। उसका इरादा बदल गया। यह पटुता का तारतम्य होता है। एक ही दिन के अभ्यास से इतनी पटुता आ नहीं सकती । वह धीरे-धीरे विकसित होती है। जो व्यक्ति पटुता को उपलब्ध हो जाते हैं वे बिना यंत्र के रासायनिक विश्लेषण कर सारे रासायनिक द्रव्यों को जान लेते हैं। शरीर रसायनों का आकार सुरमे में तो गिनती के द्रव्य हो सकते हैं । उनको सहजतया कुछ अभ्यास से जाना जा सकता है। किन्तु शरीर में अनगिन रसायन हैं । अनेक वैज्ञानिकों ने खोज के बाद बताया कि व्यक्ति जो सोचता है, चिन्तन करता है, उसके रसायन सारे शरीर में जमा हो जाते हैं। एक नख में पचास प्रकार के रसायन हैं। हमारे एक बाल में सैकड़ों प्रकार के रसायन हैं । सिर का एक बाल पूरे व्यक्तित्व की व्याख्या करने में पर्याप्त है । एक बाल के आधार पर व्यक्ति के अतीत को जाना जा सकता है, वर्तमान और भविष्य को जाना जा सकता है । उसके आधार पर मनुष्य के स्वभाव और चरित्र को जाना जा सकता है। एक शब्द में कहा जा सकता है कि एक बाल में वे सारे रसायन होते हैं जो व्यक्तित्व को अभिव्यक्ति देते हैं । सारा शरीर रसायनों से भरा पड़ा है । दस, बीस या पचास दिन की शरीर प्रेक्षा से उन सब रसायनों को नहीं जाना जा सकता । निरन्तर प्रेक्षा करने से ही उनसे परिचित हो सकते हैं । निरन्तर प्रेक्षा करते हुए हम यह सोचें कि सूक्ष्म पर्यायों को पकड़ने की क्षमता कितनी विकसीत हो रही है? सूक्ष्म सत्य कितने हस्तगत हो रहे हैं? जो व्यक्ति जितना ज्यादा वर्तमान में जीता है वह उतना ही पटु होता जाता है, कुशल होता जाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003071
Book TitleMukta Bhog ki Samasya aur Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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