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________________ १५६ / मुक्त भोग की समस्या और ब्रह्मचर्य पकड़ लेता है, उसमें इतनी पटुता आ जाती है कि उसकी तुलना नहीं की जा सकती । एक कहानी है। कहानी ही नहीं एक मार्मिक बात है जो व्यक्ति की पटुता का तारतम्य स्पष्ट करती है। एक विदेशी राजा ने भारत पर आक्रमण करना चाहा। उसने सोचा कि आक्रमण करने से पूर्व यह जान लेना चाहिए कि उस राजा के पास कोई बुद्धिमान व्यक्ति है या नहीं? कोई अनुभवी या वृद्ध व्यक्ति है या नहीं? बूढ़े व्यक्ति का बहुत महत्त्व होता है। यह मत मानिए कि बूढ़े का कोई महत्त्व नहीं है। बहुत महत्त्व है बूढ़े व्यक्ति का । हमारे यहां एक उक्ति प्रचलित है—'साठी बुद्धि नाठी'-साठ वर्ष का हुआ और बुद्धि नष्ट हो गई। यह उक्ति भी आज भ्रान्ति सिद्ध हो गई है । पश्चिमी जर्मनी के दो मनोवैज्ञानिकों ने हजारों व्यकि तयों पर परीक्षण कर यह निष्कर्ष निकाला है कि साठ वर्ष के बाद ही मनुष्य का वास्तविक जीवन शुरू होता है । बौद्धिक क्षमता का पूरा विकास उसी अवस्था में होता है। साठ वर्ष के बाद ही स्वास्थ्य का पूरा विकास होता है। कार्यजा-शक्ति भी उसी समय विकसीत होती है। साठ वर्ष के पहले मनुष्य का अनुभव इतना परिपक्व नहीं होता । साठ वर्ष के बाद ही उसमें परिपक्वता आती है। उनकी इस घोषणा ने 'साठी बद्धि नाठी' को सर्वथा भ्रान्त सिद्ध कर डाला। बढ़ा आदमी सर्वथा व्यर्थ नहीं होता। अनुभव और बौद्धिक परिपक्वता की दृष्टि से बूढ़े व्यक्ति का बड़ा मूल्य है। जहां भी अनुभव के आधार पर निर्णय लेने का प्रश्न आता है वहां बूढ़ा आदमी खोजा जाता है। न केवल मनुष्यों में किन्तु पशु-पक्षियों में भी बूढ़े आदमियों के अनुभवपरक घटनाक्रम भी प्रचलित हैं। उस विदेशी राजा ने सुरमे की एक डिबिया देकर एक दूत भेजा। उस डिबिया में दो आंखों में आंजा जाए. इतना-सा सुरमा था। वह सुरमा अंधे को आंख देने में समर्थ था। दूत आया। राजा ने दूत का स्वागत किया । दूत ने कहा-'इस डिबिया में दो आंखों में आंजे, इतना-सा सुरमा है । हमें इसकी अधिक आवश्यकता है। आपके पास हो तो हमें दें। या इस सुरमे के आधार पर कोई व्यक्ति ऐसा ही सुरमा बना सके तो हम उस आदमी को अपने साथ ले जाना चाहेंगे।' राजा ने सुना । मंत्रियों से सलाह ली। किन्तु ऐसा सुरमा कौन बना सके ? किसी की बुद्धि में समाधान नहीं आया। राजा ने सोचा- मेरा एक बूढ़ा मंत्री था, जो अभी सेवा-निवृत्त हुआ है, उसे बुलाकर पूछा जाए। राजा ने उसे बुला भेजा। वह अंधा हो गया था। वह आया। राजा ने सारी बात कही । अन्त में कहा—'इस सुरमे से तुम अपनी आंखें खोल लो। आंखों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003071
Book TitleMukta Bhog ki Samasya aur Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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