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संभोग से समाधि : कितना सच, कितना झूठ? | १४९
ध्यान महान् शक्ति है । शक्ति के दो प्रयोजन होते हैं—तारना और मारना । जो शक्ति तार सकती है, वह मार भी सकती है। ध्यान से व्यक्तित्व का विकास भी हो सकता है और ह्रास भी हो सकता है। महावीर ने कहा 'जब चेतना आर्त और रौद्र ध्यान में उतर आती है तब व्यक्ति का ह्रास घटित होता है और जब वही चेतना धर्म और शुक्ल ध्यान में उतर आती है तब व्यक्ति का विकास घटित होता है।'
ध्यान के दोनों मार्ग हमारे सामने हैं। हमें कौन-सा रास्ता अपनाना है, यह हमारी रुचि पर निर्भर करता है। ध्यान के नाम पर चलने वाले अकार्य से सतत सावधान रहना-यह पहली आवश्यकता है ।
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