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सभाग से समाधि : कितना सच, कितना झूठ? । १४७ आचार्य कहते हैं, जब तक ये मौलिक वृत्तियां नष्ट नहीं होती तब तक समाधि की बात तो दूर, व्यक्ति अध्यात्म की दिशा में एक पग भी आगे नहीं बढ़ सकता।
आज हमारे तथाकथित भगवान् इन वृत्तियों के भोग से समाधि प्राप्त करवाने का ढिंढोरा पीट रहे हैं। इससे बड़ा बुद्धि का दिवालियापन और क्या हो सकता है? यदि भोग से ही समाधि प्राप्त हो जाती तो योग की बात व्यर्थ है। समाधि लक्ष्य है। योग उस लक्ष्य-सिद्धि का मार्ग है, साधन है। भोग इस मार्ग का बाधक
___ तथाकथित भगवानों के शिविरों में साधना करने वाले अनेक साधकों से पूछा तो लगा कि वे आमोद-प्रमोद को ही ध्यान मानते हैं । यथार्थ ध्यान से वे दूर ही हैं।
मैं किसी व्यक्ति विशेष की आलोचना करना नहीं चाहता। मेरा विरोध उन सबसे है, जो वाम-मार्ग को समाधि मार्ग मानते हैं और अध्यात्म के नाम पर वडम्बना करते है । वे जिस डाल पर बैठे हैं, उसी पर कुठाराघात कर रहे हैं। कैसी पूर्खता !
ये भगवान् समाधि का लालच देकर अपने भक्तों को पथच्यत कर रहे हैं। इससे भगवानों का कुछ नहीं बिगड़ेगा, किन्तु भक्त का अध:पतन निश्चित है ।इस प्रकार एक ध्यान केन्द्र या योग आश्रम बदनाम होने पर, सारे ध्यान केन्द्रों पर उसकी आंच आती है, यह सबसे खतरनाक स्थिति है।
एक पुरानी बात है। एक गांव के लोग बहुत प्रामाणिक थे। कोई चोरी नहीं करता था। एक बार एक आदमी ने चोरी कर ली। सभी व्यक्तियों पर शंका होने लगी। यदि एक व्यक्ति चोरी कर सकता है तो दूसरा भी चोरी कर सकता है, तीसरा और चौथा भी चोरी कर सकता है ।
इसी प्रकार ध्यान आश्रमों के लिए भी आशंका की स्थिति बन सकती है। एक आश्रम में यदि यह अश्लीलता चलती है तो 'क' 'ख' के आश्रम में भी चल सकती है। यह संदेह ध्यान-आश्रमों पर कुठाराघात है। संयम के बिना सिद्धि नहीं
समाधि की प्राप्ति एक अद्भुत घटना है। वृत्तियों पर नियन्त्रण किए बिना समाधि की प्राप्ति नहीं हो सकती। जो व्यक्ति ‘काम-वासना' पर नियन्त्रण नहीं खता, वह ध्यान की गहराई में नहीं जा सकता।
मनोविज्ञान का सूत्र है- इच्छाओं का दमन मत करो। यह एक तथ्य है, सचाई है। किन्तु हमें इसका अर्थ सही रूप में समझना होगा। इसका अर्थ यह नहीं है कि
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