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________________ संभोग से समाधि : कितना सच, कितना झूठ? ज्ञान और ध्यान भिन्न नहीं है । चलं चित्तं ज्ञानं, स्थिरं चित्तं ध्यानम्-चंचल चेत्त का नाम है 'ज्ञान' और स्थिर चित्त का नाम है 'ध्यान'। ___पानी और बर्फ एक ही है । तरल जल को पानी और सघन जल को बर्फ कहा जाता है । जैसे तरल जल बर्फ बन जाता है, वैसे ही चंचल चित्त भी स्थिर अवस्था को माप्त कर ध्यान बन जाता है । जब तक हम ज्ञान की भूमिका को पार कर ध्यान की भूमिका में नहीं पहुंच जाते, तब तक स्व-अनुभव जैसा कुछ भी नहीं होता, केवल हम ऊपरी स्तर पर ही तैरते रहते हैं। यह स्थिति खतरों से खाली नहीं होती । जो सदा दूसरों के सहारे चलता है, ज्ञान के सहारे चलता है, उसे खतरा बना रहता है। ध्यान स्व-अनुभव की स्थिति है । साधना का यह मूल आधार है । जितने रहस्य उद्घाटित हुए हैं, वे सब ध्यान-काल में ही हुए हैं । मन की एकाग्रता को साधकर ही वैज्ञानिक नये रहस्य प्रकट करता है और अध्यात्म-साधक भी मानसिक एकाग्रता के वरम-बिन्दु पर पहुंचकर ही नये रहस्य प्रकट करता है। ध्यान के बल पर भगवान् महावीर ने अनेक नये सत्य उद्घाटित किए। महात्मा बुद्ध ने ध्यान की साधना कर मध्यम प्रतिपदा का उपदेश दिया। जिन आचार्यों ने ध्यान की गहराई में जाकर देखा, उन्हें नये रहस्य प्राप्त हुए। अध्यात्म का मार्ग ध्यान की प्रस्तुति है। इस युग में ध्यान-साधना अत्यन्त अपेक्षित है। कुछ लोग मानते हैं कि ध्यानसाधना योगियों के लिए, जंगल में रहने वालों के लिए जरूरी है, गृहस्थ के लिए उसकी कोई उपयोगिता नहीं। ध्यान-साधना के परिणामों ने इस भ्रान्ति को तोड़ा। व्यक्ति-व्यक्ति को यह अनुभव हुआ है कि ध्यान के बिना जीवन स्वस्थ नहीं रह सकता। इसीलिए आज स्थान-स्थान पर ध्यान केन्द्र चल रहे हैं। ऐसे सैकड़ों ध्यान-केन्द्र हैं, जहां हजारों व्यक्ति विभिन्न पद्धतियों से ध्यान की शिक्षा ले रहे हैं। ध्यान की परम्परा पुन: व्यापक हो रही है। मर्यादा और शुद्धि मैं मानता हूं कि सीमित वस्तु ही विशुद्ध रह सकती है। गंगोत्री का पानी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003071
Book TitleMukta Bhog ki Samasya aur Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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