SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३६ । मुक्त भोग की समस्या और ब्रह्मचर्य नहीं है। दवाइयां बनाने वाली इतनी बड़ी-बड़ी कम्पनियां बन गईं फिर भी न डॉक्टर को फुरसत है, न दवा देने वालों को फुरसत है, न दवा लेने वालों को फुरसत है। चारों ओर रोग का एक चक्का चल रहा है । इसका कारण क्या है? सीमा के अतिक्रमण का अर्थ ___ हम महावीर की वाणी को पढ़ें। महावीर ने कहा-भोग काल में रोग पैदा होते हैं। संस्कृत कवि ने भी यही कह दिया-भोगा रोगफला–भोग का फल है रोग। इस बात को बहुत कम पकड़ा गया-इन्द्रियों का भोग एक सीमा तक ही उचित हो सकता है। सीमा के अतिक्रमण का अर्थ है रोग को खुला निमंत्रण । बहुत सारे शारीरिक और मानसिक रोग इसी कारण से पैदा होते हैं । यदि राग या द्वेष भीतर छिपा है तो बीमारियों को पनपने का मौका मिलेगा। यदि राग और द्वेष नहीं हैं तो बीमारियों को पनपने का मौका सहज नहीं मिलेगा। चलते समय पत्थर की चोट लग गई, कांटा चुभ गया, हम उसे रोग न मानें । यह कोई मुख्य बीमारी नहीं है । वर्षा हुई, जुकाम लग गया, यह कोई खास बीमारी नहीं है। बीमारी वह होती है, जो सताने वाली होती है। जो बीमारी घर जमा कर बैठ जाती है, वह बीमारी है। हृदय रोग, कैंसर, अल्सर आदि-आदि जो बीमारियां हैं, वे हमारे राग एवं द्वेष से उत्पन्न हुई बीमारियां हैं, भोग के कारण उपजी हुई बीमारियां हैं। पहले डॉक्टर बीमार को सीधे देखकर जान लेते थे कि कौन-सा रोग है लेकिन अब यह सोचा जाता है-कौन व्यक्ति किस बीमारी से बीमार है । लय बिगड़ने से बीमारी बिगड़ती है। लय को संवारना बड़ा कठिन होता है। जितनी मोहकर्म की प्रकृतियां हैं, वे हमारे मस्तिष्क की स्वाभाविक लय में बाधा पहुंचाती हैं। मन में कोई विचार की तरंग उठती है, मस्तिष्क की लय बिगड़ जाती है, उसमें बाधा आ जाती है। कौन होता है बीमार? __यह एक तथ्य है—जो बीमार होता है, उसे बीमारी होती है। पूछा गयानारकी में कौन पैदा होता है ? मनुष्य पैदा होता है या तिर्यञ्च? कहा गया-नारकी में न मनुष्य पैदा होता है, न तिर्यञ्च पैदा होता है। नारकी में मनुष्य कभी जाता ही नहीं, देवता पैदा होता ही नहीं। नारकी में नैरयिक ही पैदा होता है। प्रश्न है-बीमारी किसको पकड़ती है? कहा गया—बीमार को ही बीमारी पकड़ती है। स्वस्थ को बीमारी कभी नहीं पकड़ती। यह बात बहुत वैज्ञानिक है। हम इस दृष्टि से देखें । एक जैविक रासायनिक श्रृंखला होती है, रोग-प्रतिरोधक शक्ति होती है, वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003071
Book TitleMukta Bhog ki Samasya aur Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy