SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इन्द्रिय विजय का सूत्र / १३१ किसी चीज से घृणा मत करो । कलकत्ता में हमने एक अघोरी साधक को देखा । उसको यह साधना कराई जाती है - इस दुनिया में अभक्ष्य कोई चीज नहीं है, घृणा करने जैसा कुछ भी नहीं है। तुम किसी से घृणा मत करो । यह भी कहा गया- राग करने जैसा कुछ भी नहीं है। तुम किस पर राग करते हो । बौद्ध दर्शन में शव - दर्शन का प्रयोग रहा है। साधक को श्मशान में ले जाया जाता है, उसे मृत प्राणियों के कलेवर दिखाए जाते हैं। कहा जाता है— तुम मुर्दे के एक एक अवयव को देखो ! वास्तव में यह है क्या ? इस प्रकार के भाव पैदा करो, जिससे राग वर्जित हो जाए । इन्द्रिय-निग्रह एक है राग पर विजय का प्रयोग और एक है घृणा पर विजय का प्रयोग । महावीर ने दोनों बातों को गौण किया । न ओघड़ साधना वाली बात पर बल दिया और न श्मशान साधना वाली बात पर महावीर ने इस सूत्र को पकड़ा - यदि आध्यात्मिक बनना है, आध्यात्मिक चेतना को जगाना है तो केवल इन निमित्तों के आधार पर मत चलो । महावीर ने ज्यादा बल दिया उपादान पर । उन्होंने गौण को भी स्थान दिया पर ज्यादा ध्यान केन्द्रित किया जड़ पर, मूल उपादान पर । महावीर ने कहा – कोई घृणा पैदा करने वाली वस्तु हो सकती हैं और कोई प्रियता पैदा करने वाली वस्तु । तुम्हें उससे क्या लेना है ? तुम ध्यान दो अपने मनोज्ञ और अमनोज्ञ भाव पर । तुम उस भाव का निग्रह करो। तुम्हें मनोज्ञ पर राग नहीं करना है और अमनोज्ञ पर द्वेष नहीं करना है । तुम ऐसा करोगे तो इन्द्रिय का निग्रह हो जाएगा । हम कौटिल्य की भाषा को पढ़ें- काम, क्रोध, लोभ, मान, मद और हर्ष—ये सब इन्द्रिय की आसक्ति को पैदा करते हैं । इनका निग्रह करो, इन्द्रिय-विजय हो जाएगी। महावीर ने कहा--राग-द्वेष का निग्रह करो, इन्द्रिय-विजय हो जाएगी। हम दोनों की भाषा को मिलाएं। कहां अंतर है ? इन्द्रिय-विजय तभी संभव है, जब राग-द्वेष को जीतें, काम-क्रोध आदि को जीतें । प्रश्न हो सकता है— राग-द्वेष बहुत सघन हैं। कोई आदमी एक दिन में राग-द्वेष पर विजय कैसे कर पाएगा ? यही जानने का बिन्दु है । राग-द्वेष विजय का मतलब यह नहीं है कि हम वीतराग बन जाएंगे, किन्तु हम राग को बांट लें। उसके हजारों प्रकार हैं । हम पहले इन्द्रिय को पकड़ें, आंख को पकड़ें। आंख से जुड़ी है राग की एक प्रणाली । हम संकल्प करें - चक्षु संबंधी राग पर नियंत्रण करना है। इस संकल्प की एक पद्धति है । हमने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003071
Book TitleMukta Bhog ki Samasya aur Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy