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परिणामि-नित्य/ ७९
तरंगें उठीं। तालाब का रूप बदल गया। जो जल शांत था, वह क्षुब्ध हो गया, तरंगित हो गया। तरंग तल में है। जल से भिन्न तरंग का कोई अस्तित्व नहीं है। जल में तरंग उठती है इसलिए हम कह सकते हैं कि तालाब तरंगित हो गया। तरंगित होना एक घटना है। वह विशेष अवस्थावान में घटित होती है। जलाशय नहीं है तो जल नहीं है। जल नहीं है तो तरंग नहीं है। तरंग का होना जल के होने पर निर्भर है। जल हो और तरंग न हो-ऐसा भी नहीं हो सकता। जल का होना तरंग होने के साथ जुड़ा हुआ है। जल और तरंग-दोनों एक-दूसरे में निहित हैं-जल में तरंग और तरंग में जल।
द्रव्य पर्याय का आधार होता है। बह अव्यक्त होता है, पर्याय व्यक्त। हम द्रव्य कहां देख पाते हैं। हम देखते हैं पर्याय को। हमारा जितना ज्ञान है, वह पर्याय का ज्ञान है। मेरे सामने एक मनुष्य है। वह एक द्रव्य है। मैं उसे नहीं जान सकता। मैं उसके अनेक पर्यायों में से एक पर्याय को जानता हूं और उसके माध्यम से यह जानता हूं कि यह मनुष्य है। जब आंख से उसे देखता हूं तो उसकी आकृति और वर्ण-इन दो पर्यायों के आधार पर उसे मनुष्य कहता हूं. कान से उसका शब्द सुनता हूं, तब उसे शब्द-पर्याय के आधार पर मनुष्य कहता हूं। उसकी समग्रता को मैं भी नहीं पकड़ पाता। आम को कभी मैं रूप-पर्याय से जानता हूं, कभी गंधपर्याय से और कभी रस-पर्याय से। किन्तु सब पर्यायों से एक साथ जानने का मेरे पास कोई साधन नहीं है। आंख जब रूप को देखती है तो गंध
और रस आदि पर्याय नीचे चले जाते हैं। गंध का पर्याय जब जाना जाता है तब रूप का पर्याय नीचे चला जाता है। इस समग्रता के सन्दर्भ में मैं कहता हूं कि मैं द्रव्य को नहीं देखता हं, केवल पर्यायों को देखता हूं और पर्याय के आधार पर द्रव्य का बोध करता हूं।
हमारा पर्यायं का जगत बहुत लम्बा-चौड़ा है और द्रव्य का जगत बहुत छोटा है । एक द्रव्य और अनन्त पर्याय । प्रत्येक द्रव्य पर्यायों के वलय से घिरा हुआ है। प्रत्येक द्रव्य पर्यायों के पटल में छिपा हुआ है । उसका बोध कर द्रव्य को देखना इन्द्रिय ज्ञान के लिए सम्भव नहीं है।
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