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________________ १२ / जैन दर्शन के मूल सूत्र असुरक्षित अनुभव करता है। वह अध्यात्म के पथ पर नहीं चल सकता। अध्यात्म के पथ पर चलने वाला अपने आपको सदा सुरक्षित अनुभव करता है। मुझे किसी सुरक्षा की अपेक्षा नहीं है। स्वतंत्रता और स्वावलम्बन ही मेरी सुरक्षा है।' ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन महावीर ध्यान की मुद्रा में खड़े थे। कुछ युवतियों ने आकर सहवास के लिए प्रार्थना की। भगवान ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया। युवतियों ने उन्हें अपने मायाजाल में फंसाने की अनेक चेष्टाएं की, पर उनकी चैतन्य-केन्द्र की ओर बहने वाली ऊर्जा का एक कण भी काम-केन्द्र की ओर प्रवाहित नहीं हुआ। भगवान के ध्यान की धारा अविच्छिन्न चलती रही। युवतियां जिस दिशा से आई थीं उसी दिशा में लौट गईं। कैवल्य भगवान महावीर की साधना का मूलमंत्र है-समता। न राग और न द्वेष-चेतना की यह अनुभव-दशा समता है। भगवान ने अनुभव किया, दु:ख का मूल बीज है कर्म और कर्म का मूल बीज है राग-द्वेष। हिंसा, असत्य, चोरी, अब्रह्मचर्य और परिग्रह-ये राग-द्वेष के ही परिणाम हैं, राग-द्वेष के होने पर ये होते हैं, उनके न होने पर नहीं होते। भगवान ने साढ़े बारह वर्ष के साधनाकाल में केवल ३५० दिन भोजन किया। शेष समय उपवास में बीता। उन्होंने छह मास तक लगातार उपवास किया। भगवान ने समूचे साधनाकाल में कुल मिलाकर अड़तालीस मिनट से अधिक नींद नहीं ली। भगवान ने सर्दी-गर्मी से बचने के लिए कोई भी वस्त्र नहीं ओढ़ा। कष्ट आने पर किसी की शरण में नहीं गये। चींटियों ने सताया, जंगली मच्छरों ने काटा, अग्नि से पैर झुलस गये। पर भगवान ने उनका वैसे अनुभव किया जैसे कुछ हुआ ही न हो। लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, निंदा-अनिंदा, मान-अपमान, जीवन-मरण के अनगिन प्रसंगों और घटनाओं ने भगवान की समता की कसौटी की। पर हर कसौटी में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003070
Book TitleJain Darshan ke Mul Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2001
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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