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________________ ७६ आमंत्रण आरोग्य को इसलिए बहुत बार धर्म के स्थान पर सम्प्रदाय का प्रयोग करते हैं और सम्प्रदाय के स्थान पर धर्म का प्रयोग करते हैं । यदि हम धर्म को सम्प्रदाय से पृथक् मानें तो हमारा दृष्टिकोण काफी सुलझ जाता है । प्रश्न समाप्त नहीं होता । नया तर्क उभरकर सामने आता है— धर्म क्या है ? सम्प्रदाय जिस धर्म की व्याख्या देता है, वही हमारे लिए धर्म बनता है इसीलिए बहुत सारे चिन्तक धर्म और सम्प्रदाय को पृथक-पृथक नहीं मानते । वे राजनीति और धर्म को भी पृथक् नहीं मानते । उनका तर्क वही है- यदि राज्य धर्म से अनुप्राणित नहीं होगा तो वह कल्याणकारी नहीं होगा । उनकी कल्पना में वही धर्म कल्याणकारी है, जिसकी व्याख्या उनका सम्प्रदाय दे रहा है । ―― यह कोई समस्या का समाधान नहीं है । समस्या का समाधान सम्प्रदाय विहीन अथवा निर्विशेषण धर्म के द्वारा हो सकता है। जिस धर्म के साथ सम्प्रदाय जुड़ा हुआ है, उसे यदि राज्य प्राथमिकता दे तो धर्म का महत्त्व कम बढ़ेगा, सम्प्रदाय का अधिक बढ़ेगा। समाधान कम मिलेगा, समस्याएं अधिक पैदा होंगी। लोकतन्त्र और धर्म राज्य धर्म सापेक्ष होना चाहिए किन्तु सम्प्रदाय से प्रतिबद्ध धर्म से निरपेक्ष होना अत्यन्त आवश्यक है । यदि ऐसा न हो तो वह राजतंत्रीय राज्य हो सकता है, लोकतन्त्रीय राज्य कभी नहीं हो सकता । राजतन्त्र के युग में राजा जिस धर्म को स्वीकार करता है, उसी धर्म को मानने के लिए प्रजा विवश हो जाती है । लोकतंत्र निरंकुश शासन प्रणाली नहीं है इसलिए उसमें राजतन्त्रीय निरंकुश प्रवृत्ति की पुनरावृत्ति नहीं की जा सकती । साधना प्रधान धर्म वैयक्तिक होता है । उससे राज्य का संबंध नहीं होता । धर्म का एक अंग है नैतिकता । समाज और राज्य से उसी का संबंध होता है । नैतिकता की आचार संहिता को मूल्य देना लोकतन्त्रीय शासन के लिए अत्यन्त अनिवार्य है । उसे लोकतन्त्र के प्रशिक्षण का एक भाग बनाया जाए तो धर्म निरपेक्षता की पृष्ठभूमि बदल जाती है । लोकतन्त्र और नैतिकता आश्चर्य की बात है— हिन्दुस्तान विश्व का सबसे बड़ा लोकतन्त्र है फिर भी लोकतन्त्र के प्रशिक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है । क्या नैतिक विकास के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003069
Book TitleAmantran Arogya ko
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size9 MB
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