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२४. धर्म निरपेक्ष शब्द से उलझी समस्या
भाव और भाषा की दूरी एक जटिल समस्या है | भाव बोलते नहीं और भाषा के पास अनुभूति नहीं । दोनों का गठबन्धन है | अंतर्जगत् की अभिव्यक्ति के लिए भाषा आवश्यक है । इस आधार पर वह गठबंधन चल रहा है | मानव समाज का सारा व्यवहार शब्दों के सहारे चल रहा है । ये विनिमय के सर्वाधिक सशक्त माध्यम हैं। धर्म और राजनीति
धर्म अंतर्जगत् की अनुभूति या प्रक्रिया है । कुछ शब्दों ने धार्मिक जगत् में काफी उलझनें पैदा कर रखी हैं । उनमें एक शब्द है धर्म निरपेक्ष । संविधाननिर्माताओं की अंतरात्मा कहना चाहती थी- लोकतन्त्र में किसी एक धर्म की सम्प्रभुता नहीं होगी । राज्य सब धर्मों को विकास का समान अवसर देगा । वह किसी के साथ पक्षपात नहीं करेगा । अंतरात्मा के साथ शब्दात्मा जुड़ी नहीं। धर्म-निरपेक्षता का अर्थ नास्तिकता या धर्म-विमुखता किया जाने लगा ।
प्रश्न है- धर्म या राज्य या राजनीति से कोई सम्बन्ध हो या न हो ? यदि कोई सम्बन्ध न हो तो वह राज्य या राजनीति निरंकुश होगी, जनता का उत्पीड़न बढ़ेगा । यदि राज्य और राजनीति के साथ धर्म का सम्बन्ध हो तो किस धर्म का ? धर्म एक नहीं है । उसकी संख्या सैकड़ों में है । इस बिन्दु पर पहुंचकर हमारा चिन्तन एक मोड़ लेता है- धर्म सैकड़ों नहीं है, सैकड़ों हैं धर्म के सम्प्रदाय, धर्म की व्याख्याएं ।
धर्म और सम्प्रदाय
सामान्यतया हम धर्म और सम्प्रदाय को समानार्थक मानकर चल रहे हैं
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