________________
७०
आमंत्रण आरोग्य को
लाखों लोगों के प्राण लेने की शक्ति हो, वह मानवीय प्रणाली नहीं हो सकती। अधिनायक की सबसे बड़ी दुर्बलता यह है कि वह प्रतिपक्ष, प्रतिविचार और प्रत्यालोचना को सहन नहीं कर सकता । इस समस्या बिन्दु पर हृदय-परिवर्तन, मस्तिष्कीय परिवर्तन या आध्यात्मिकता की अनिवर्यता अनुभूत होती है । यदि कार्लमार्क्स और एंगेल्स को साम्यवाद के साथ आध्यात्मिकता को जोड़ने का अवसर मिलता तो साम्यवाद वरदान सिद्ध होता । वह अधिनायकवाद के साथ नहीं जुड़ता । उसकी गति राज्यविहीन राज्य की दिशा में होती । इसे विधि की विडम्बना ही माना जाए कि मार्क्स ने मंजिल माना राज्यविहीन राज्य को और उसका प्रयोग हुआ दमन, जकड़न और तानाशाही की दिशा में |
प्रश्न है सत्तासीन व्यक्तियों का
प्रश्न साम्यवाद या प्रजातंत्र का नहीं है । प्रश्न है उन व्यक्तियों का, जो प्रणाली का संचालन करते हैं और सत्ता के सिंहासन पर विराजमान होते हैं । व्यक्ति सत्ता के सिंहासन पर बैठे और उसमें उन्माद न जागे, यह तभी संभव है, जब हाथी पर अंकुश बना रहे, लगाम किसी दूसरे के हाथ में रहे । एक राजा ने हाथी पर बैठने से इन्कार कर दिया | चढ़ने से पहले उसने महावत से कहा- 'लगाम लाओ।' महावत बोला- 'इसके लगाम नहीं होती ।' राजा ने कहा- 'जिसकी लगाम मेरे हाथ में नहीं होती, उस पर मैं चढ़ना नहीं चाहता।'
लोकतंत्र में जनता अंकुश है इसलिए सिंहासन पर बैठने वाला निरंकुश शासक नहीं हो सकता । तानाशाही में कोई अंकुश नहीं होता इसलिए यहां उन्माद की संभावना को टाला नहीं जा सकता | चाऊशेस्कू जैसा राष्ट्रपति एक बार ही जन्म नहीं लेता ।
जरूरी है आध्यात्मिक प्रशिक्षण
'गरीबों की भलाई के लिए या गरीबी का उन्मूलन करने के लिए हम काम कर रहे हैं, राजनीति के मंच पर जब जब यह स्वर सुनता हूं, एक वैचारिक आघात लगता है । क्या राजनीति के कार्यकर्ता ने आध्यात्मिकता के साथ राजनीति में प्रवेश किया है अथवा केवल गरीबों की भलाई के लिए किया है ? यदि आध्यात्मिकता के साथ किया है तो वह गांधी की दिशा में चलेगा और यदि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org