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२०. संत की कसौटी
भारतवर्ष में संतों की परम्परा बहुत पुरानी है, बहुत महत्त्वपूर्ण है । चक्रवर्ती सम्राटों और महान् शासकों से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है । सम्राट बाहरी जगत् में ही जीते थे और उसी में रहते थे इसीलिए वर्तमान में उनका सिक्का चला, अतीत के गहन विचार में वे विलीन हो गए । संत बाहरी जगत् में जीते थे और रहते थे अपने अंतर्जगत् में । जो अन्तर्जगत् में रहता है, उसे दिव्यता प्राप्त हो जाती है, वह मरकर भी अमर बन जाता है |
नियम और चमत्कार
संत अन्तर्जगत् में रहता है इसलिए अंतर के रहस्य उसे ज्ञात हो जाते हैं । बाह्य जगत् के लोगों के लिए वे चमत्कार बन जाते हैं ! चमत्कारों की कहानी बहुत लम्बी और चौड़ी है | अन्तर्जगत् में एक नियम और बाह्य जगत् में एक चमत्कार । जो नियम को जानता है, उसके लिए चमत्कार कुछ नहीं है । घटना है तीस वर्ष पहले की । आचार्यश्री तुलसी बंगाल की यात्रा पर थे। कलकत्ता में चातुर्मास सम्पन्न कर शांति निकेतन की ओर लौट रहे थे । रास्ते में एक बंगाली दंपति मिला । कार रोकी । पति-पत्नी दोनों नीचे उतरे । पति इंजीनियर था । वह बोला- आचार्यप्रवर मेरी पत्नी राजयक्ष्मा (टी. बी.) की बीमारी से पीड़ित थी । औषधोपचार चल रहा था फिर भी स्वस्थ नहीं हो रही थी। उसने कहा- आचार्यश्री की चरण-धूलि लाओ । वे बहुत बड़े संत हैं। उनकी चरणधूलि का सेवन कर मैं स्वस्थ हो जाऊंगी । उसके आग्रह पर मैंने अपनी चरण-रज लाकर उसे दी । उसने चरण-धूलि का सेवन किया । अब वह बिल्कुल स्वस्थ है । उन दोनों ने बड़ी श्रद्धा के साथ वंदना की और चले गए।
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