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समस्या बन रहा है वैज्ञानिक अनुसंधान १९
तृप्त करना चाहता है इसीलिए बाजार बहुत बड़े बन गए हैं। वस्तु भंडार अनगिन पदार्थों से भरे हुए हैं | दुकानों का जाल-सा फैल गया है । ऐसे बहुत कारखाने चल रहे हैं, जिनमें निर्मित वस्तुओं की अनिवार्य आवश्यकता नहीं है । वे केवल इन्द्रियों को भुलावे में डाल रहे हैं ।
समाधान कौन देगा? __वैज्ञानिक जगत् के अनुसार भूमिगत ईंधन- तेल, कोयला, गैस आदि का भंडार सौ वर्ष में समाप्त हो जाएगा । ऊर्जा के स्रोतों की समाप्ति एक संकट बनकर गहरा गई है । उसके नये विकल्प खोजे जा रहे हैं । उपभोक्तावादी संस्कृति का समाज ऊर्जा के आधार पर निर्मित हुआ है । ऊर्जा के अभाव में उसका आधार ही ढह जाता है । बार-बार वही प्रश्न उभरकर सामने आता है । क्या मनुष्य के लिए इतने पदार्थ और उपकरण जरूरी है ? वास्तव में नहीं है- इन्द्रियों की उच्छृखलता बढ़ाकर उनकी जरूरत पैदा की गई है । इस कृत्रिम जरूरत ने गरीबों को बढ़ावा दिया है, आर्थिक विषमता को सहारा देया है, फलस्वरूप हिंसा और हत्या को नया आयाम मिला है ।
__ मैं जानता हूं- वैज्ञानिक युग में जीनेवाला विज्ञान से दूर नहीं भाग सकता, वैज्ञानिक उपलब्धियों से मुंह नहीं मोड़ सकता किन्तु क्या वह आवश्यकता और प्रलोभन के बीच भेद-रेखा भी नहीं खींच सकता ? आज का वैज्ञानिक अपनी खोजों से विरत नहीं हो सकता । क्या वह उन खोजों से अपने आपको नहीं बचा सकता, जो अपराध, हत्या और नाना प्रकार की बीमारियों के लिए जिम्मेदार है ? अनुसंधान स्वयं समस्या बन रहा है । आर्थिक विकास में उलझा हुआ व्यवसायी और व्यवसाय से जुड़ा हुआ विज्ञान क्या इसका समाधान दे सकेगा?
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