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१६ आमंत्रण आरोग्य को
का मनुष्य चिन्तन के चौराहे पर खड़ा है । वह खोज रहा है- कोई मार्ग मिले, कोई दरवाजा खुले । दरवाजा बाहर की ओर खुलेगा तो परिस्थिति ही सामने आएगी और वह यदि भीतर की ओर खुला तो मनःस्थिति सामने आएगी । आज हमें यह चुनाव करना है- परिस्थिति को बदलें या मनःस्थिति को बदलें। अनेकान्त की भाषा में इसका उत्तर होगा- दोनों को बदलें । केवल मनःस्थिति बदले, यह बात सीमित होगी । केवल परिस्थिति बदले, यह पत्तों और टहनियों को काटने जैसी बात होगी । मूल और पत्तों को अलग करके नहीं देखा जा सकता । मनःस्थिति और परिस्थिति को भी विभक्त कर नहीं देख जा सकता। दोनों के समन्वित बदलाव के प्रति हमारा ध्यान क्यों नहीं जा रहा ? इसका कोई उत्तर देगा ?
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