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२१८ आमंत्रण आरोग्य को
क्यों चल रही है विज्ञापनबाजी ?
आकर्षण या लालच की वृत्ति बहुत सारी कठिनाइयों को जन्म देती है। एक आदमी बाजार में चला जाए, पास में पैसे हों तो इच्छाओं पर नियंत्रण कर पाना कितना कठिन हो जाता है । महिलाओं के लिए तो और भी मुश्किल हो जाता है । साड़ी और आभूषणों की दुकान के सामने से गुजर कर खाली हाथ घर लौट आना शायद उनके लिए कम ही संभव है।
आज इतनी विज्ञापनबाजी क्यों चल रही है ? वस्तुओं के निर्माता मनुष्य की दुर्बलता को जानते हैं । यदि यह दुर्बलता न होती तो विज्ञापन पर लाखोंकरोड़ों रुपये पानी की तरह नहीं बहाए जाते । वस्तु चाहे खराब हो या हानिकारक, विज्ञापन व्यक्ति के मन और मस्तिष्क को इतना प्रभावित कर देते हैं कि व्यक्ति उसकी सारी बुराई को अनदेखा कर उसके उपयोग का लोभ संवरण नहीं कर पाता । यह आदमी की दुर्बलता ही तो है । दुर्बलता इसलिए है कि उसने प्रत्याहार की साधना नहीं की । साधना किए बिना दुर्बलता मिटती नहीं । कभी-कभी आदमी साधना करना नहीं जानता इसलिए ऐसा हो जाता है और कभी साधना करना जानता है किन्तु प्रत्याहार करना नहीं चाहता इसलिए ऐसा हो जाता है। नियंत्रण की शक्ति है प्रत्याहार
जो व्यक्ति मन को स्वस्थ रखना चाहता है, उसे प्रत्याहार या प्रतिसंलीनता का अभ्यास करना ही होगा । यदि हम विषय-वस्तु के साथ इन्द्रिय का निरन्तर सम्पर्क बनाए रखेंगे तो मानसिक आरोग्य की कल्पना छोड़ देनी होगी । मन धीरे-धीरे बीमार होता चला जाएगा । प्रत्याहार नियन्त्रण करने वाली शक्ति है। इस नियन्त्रण की शक्ति का नाम है आत्मानुशासन या आत्मनियमन । यह एक ही शक्ति है, जो विभिन्न रूपों में काम करती है । इस शक्ति का हम एक ही अर्थ समझ लें और वह अर्थ यह है—हम मन की शक्ति को इतना विकसित कर लें कि कम-से-कम विषय के सामने आने पर अपने-आप को रोक सकें। यह निरोध की क्षमता ध्यान के द्वारा प्राप्त हो सकती है। धारणा, ध्यान, समाधिये ऐसे साधन हैं, जिनसे यह शक्ति विकसित हो सकती है । घर में कोई उत्सव होता है, तमाम तरह के व्यंजन बने हुए होते हैं किन्तु वह दिन तेरस का है और उस दिन घर के मालिक को उपवास का संकल्प है तो वह अपने उपवास
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