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मानसिक आरोग्य और प्रत्याहार २१७ का प्रत्याहार है । आज मैं एक घंटा तक एकान्त में रहूंगा । किसी दूसरे की बात को नहीं सुनूंगा, उस पर ध्यान नहीं दूंगा, यह श्रवणेन्द्रिय का संकल्पकृत प्रत्याहार है । आज मैं मिठाई नहीं खाऊंगा, यह रसनेन्द्रिय या स्वादेन्द्रिय का प्रत्याहार है | उपवास एक प्रत्याहार है, प्रतिसंलीनता है इसीलिए वह इन्द्रियविजय का एक साधन बनता है। हम संकल्प से इन्द्रिय और विषय में वियोग करते हैं, दोनों को अलग-अलग करते हैं । एक ओर इससे हमारी संकल्प-शक्ति बढ़ती है तो दूसरी ओर इन्द्रियों को पोषण नहीं मिलता । इन्द्रिय और विषय में अपने-आप अलगाव हो जाता है । एक व्यक्ति के चश्मा लगता है किन्तु वह उसे कहीं भूल गया है, या चश्मा टूट गया है । इस स्थिति में समाचार पत्र उसके सामने है, वह उसे पढ़ना चाहता है किन्तु पढ़ नहीं पाता । यह विवशताजन्य प्रत्याहार है । वास्तव में प्रत्याहार वह होता है, जिसमें प्राप्त विषय से व्यक्ति स्वयं को स्वेच्छा से अलग कर लेता है । खाद्य पदार्थ सामने है और व्यक्ति यह संकल्प करता है—मैं इसे नहीं खाऊंगा । यह स्वेच्छाकृत प्रत्याहार है। मजबूरी में किया गया प्रत्याहार कभी-कभी मजाक का विषय भी बन जाता है ।
विवशताजन्य प्रत्याहार
एक आदमी होटल में भोजन करने गया । होटल के बैरे ने भोजन की तालिका सामने रख दी । उसने तालिका को देखा, जेब में चश्मे को टटोलना शुरू किया किन्तु चश्मा नहीं मिला । उसे घर पर ही भूल आया था । अब वह उस तालिका को कैसे पढ़े ? उसने बैरे से कहा- इसे तुम ही पढ़ लो । बैरा बोला-'महाशय ! मैं भी इसे पढ़ नहीं सकता, क्योंकि मैं भी अनपढ़ हूं।' उसके पास चश्मा नहीं था, इसलिए उसे अनपढ़ होना पड़ा । बैरे ने यही समझामेरी तरह यह व्यक्ति भी अनपढ़ है ।
विवशता में किया गया प्रत्याहार मखौल का विषय बनता है | उसका कोई बहुत मूल्य नहीं होता । मूल्य उस प्रत्याहार का होता है, जो हमारे संकल्प से निःसृत होता है । नहीं खाऊंगा, नहीं बोलूंगा, नहीं सुनूंगा, नहीं देखूगा, नहीं छूऊंगा, नहीं तूंधूंगा-इस प्रकार पांचों इन्द्रियों का प्रत्याहार होता है तो मनोबल अपने-आप बढ़ता है, संकल्प शक्ति अपने आप बढ़ती है । जिसमें प्रतिसंलीनता की स्थिति कमजोर होती है, जो निरन्तर विषय के साथ जुड़ा रहता है वह मन का आरोग्य तो क्या, शरीर का आरोग्य भी नहीं रख पाता !
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