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________________ साधुवाद गोर्बाच्योव ९ कहते हैं- मनुष्य के मस्तिष्क में एक परत एनीमल ब्रेन की है । आदिम वृत्तियां उसी के आधार पर चलती है । हिंसा, उत्तेजना, आक्रामक मनोवृत्ति, आवेश, प्रतिशोध और संघर्ष- इन सबके मूल में वही मस्तिष्क काम कर रहा है । मनुष्य ने एक विशेषता अर्जित कर ली। पशु में पाशविक वृत्ति है पर बुद्धिमत्ता नहीं है इसलिए उसकी पाशविक वृत्ति का प्रयोग एक सीमा में होता है। मनुष्य में पाशविक वृत्ति और बुद्धि-दोनों है इसलिए वह अपनी पाशविक वृत्ति का प्रयोग बुद्धि की पैनी धार के साथ कर रहा है । यह प्रयोग असीम बन गया है । पाषाण युग से अणु अस्त्रों तक का विकास उसी का परिणाम है । मनुष्य बुद्धिमान् है इसलिए इस विकास से वह पीछे हटना भी चाहता । पाशविक वृत्ति का खतरा सीमित होता है | उसके साथ बुद्धि का योग होने पर खतरा असीम बन जाता है । आज का विश्व उसी खतरे का सामना कर रहा है । इस खतरे का समाधान बौद्धिक स्तर पर नहीं किया जा सकता । इसके समाधान का एक मात्र उपाय है--आध्यात्मिक चेतना का विकास । अध्यात्म का स्वर कल तक साम्यवाद के खेमे से जो स्वर फूट रहा था, वह कोरी भौतिकता का स्वर था । गोर्बाच्योव का जो स्वर आ रहा है, वह अध्यात्म का स्वर है, अनेकांत का स्वर है-'हम अपना विश्वास नहीं छोड़ेंगे और दूसरों से अपना विश्वास छोड़ने का अग्रह भी नहीं करेंगे ।' यह स्वर कोरी बौद्धिकता का नहीं है । इसके पीछे स्वतन्त्रता की आस्था और मानवीय मूल्य की प्रेरणा है। अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध मानवीय मूल्यों के आधार पर बने, उन्हें विचारधारा से मुक्त किया जाए। कल तक अपने से भिन्न राजनीतिक और धार्मिक विचार रखने वालों को जेल के सींखचों में बन्द करने की बात चलती थी। आज उन्हें मुक्त आकाश दिया जा रहा है। कल और आज के मौलिक अंतर को आध्यात्मिक चेतना के आधार पर ही समझा जा सकता है । बुद्धि इस बात को स्वीकार नहीं करती कि अपने से भिन्न विचार रखने वालों को उड़ानें भरने के लिए मुक्त आकाश दिया जाए । एक शक्तिशाली राष्ट्र का एक शक्तिशाली नेता अहिंसा, अनेकांत और अध्यात्म की भाषा में बोलता है और अहिंसक विश्व के निर्माण की बात कहता है, हथियारों की अर्थव्यवस्था को निःशस्त्रीकरण की अर्थ-व्यवस्था में बदलने का आह्वान करता है । क्या यह कम आश्चर्य है ? क्या यह दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य नहीं है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003069
Book TitleAmantran Arogya ko
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size9 MB
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