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आमंत्रण आरोग्य को
और विहार-दोनों के बारे में पर्याप्त ज्ञान का होना जरूरी है । विहार में हमारी सारी चर्या-सोना, बैठना, चलना आदि समाविष्ट है । आयुर्वेद का सिद्धान्त है—दिन में सोना वायु को बढ़ाना है । वर्षा ऋतु या सर्दी की ऋतु में सोना तो गैस की बीमारी को और जटिल बना देना है | विधान किया गया हैयदि दिन में नींद लेनी हो तो बैठकर लें, लेटकर न लें । दिन में दो-तीन घंटे सोना बीमारी को निमंत्रित करना है। केवल गर्मी की ऋतु में दिन में कुछ देर सो लेना विहित माना गया है । संदर्भ आहार का
हम भोजन की बात को लें । सूखा भोजन वायु को बढ़ाता है | आचारांग चूर्णि का प्रसंग है-भगवान महावीर ने संथाल परगना की यात्रा की । वहां के लोगों ने भगवान को काफी कष्ट दिए, काफी सताया, कठिनाइयां पैदा की। बात-बात पर वहां के लोग क्रोध में आ जाते थे । चूर्णिकार ने स्पष्ट किया है-वहां तिल नहीं होते थे इसलिए तेल नहीं होता था । गाएं नहीं थीं इसलिए घी भी नहीं होता था । न तेल, न घी और इन्हें आयात करने का उनके पास कोई साधन नहीं था । आदिवासी घी-तेल कहां से लाते? वे रूखा भोजन करते थे, इसी कारण उनमें क्रोध बड़ा प्रबल था | व्याकरण में एक उदाहरण आता है-बातघ्नं तैलं, पित्तघ्नं घृतम् कफघ्नं मधु । तेल वायु का शमन करने वाला है, घी पित्त का शमन करने वाला है और मधु कफ का शमन करने वाला है। संस्कृत व्याकरण में भी इनका निर्देश मिलता है ।
संतुलित आहार की परिभाषा
जैन आचार्यों ने सन्तुलित आहार पर बहुत बल दिया । आजकल लोग इस संबंध में बहुत कम जानते हैं और जानते भी हैं तो इस पर ध्यान कम देते हैं । सन्तुलित आहार की एक निश्चित परिभाषा थी । पूछा गया-मुनि को कैसा भोजन करना चाहिए? बताया गया-सदा रूखा नहीं और सदा चिकना नहीं । प्रणीत भोजन भी प्रतिदिन नहीं और रूखा भोजन भी हमेशा नहीं । इसका कारण बतलाया गया—यदि वह रूखा भोजन करेग तो प्रस्रवण के लिए बारबार उठना पड़ेगा, स्वाध्याय में विघ्न पड़ेगा । कोरा रूखा भोजन ही करेगा तो क्रोध भी बढ़ जाएगा इसीलिए तपस्या में गुस्सा ज्यादा आने लग जाता है ।
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